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पुल नहीं भ्रष्टाचार की मरम्मत, क्षमता 100 तो 500 लोग कैसे पहुंचे, मोरबी हादसे में 138 मौतें…जिम्मेदार कौन?

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हाइलाइट्स

  • गुजरात के मोरबी हादसे को लेकर खड़े हो रहे सवाल
  • मच्छु नदी का पुल गिरने से सैंकड़ों ने गंवाई जान
  • पुल की मरम्मत के 5 दिन बाद ही हो गया हादसा
  • सुरक्षा पर सवाल, किसकी इजाजत से पहुंचे इतने लोग
अहमदाबाद: गुजरात के मोरबी में मच्छु नदी का पुल गिरने से हुए हादसे में मृतकों की संख्या बढ़कर 183 पहुंच चुकी है। हादसे को लेकर सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा हो रहा है कि जब पुल की क्षमता ही 100 लोगों की थी तो आखिरकार कैसे उस पर इतनी तादाद में लोग पहुंच गए। मोरबी में हाल ही में पुनर्निर्मित 140 साल पुराने झूला पुल के गिरने से बड़ी संख्या में लोगों के मारे जाने की आशंका है, क्योंकि लगातार शवों का मिलना जारी है। थल सेना, वायु सेना और एनडीआरएफ की टीमें लगातार रेस्क्यू में लगी हुई हैं। पुल की मरम्मत के बाद इसे आम जनता के लिए खोला गया था। जिसके पांच दिन बाद ही पुल का इस तरह से गिर जाना यह सवाल खड़े करता है कि क्या पुल के बजाय भ्रष्टाचार की मरम्मत हुई थी।


हादसे को लेकर खड़े हो रहे बड़े सवाल
मोरबी की मच्छु नदी पर बने झूला पुल के गिरने को लेकर बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं। आखिरकार इस घटना के पीछे जिम्मेदार लोगों ने जरा सी भी संवेदनशीलता दिखाई होती तो इतने बड़े हादसे को रोका जा सकता था। जब पुल की क्षमता उतनी नहीं थी कि उस पर इतने लोग एक साथ जा सकें या फिर वह इतना भार वहन कर सके तो किसकी इजाजत से इतने लोग वहां पर एक साथ पहुंच गए।

  • मोरबी पुल हादसे का जिम्‍मेदार कौन ?
  • बिना फिटनेस सर्टिफिकेट कैसे खुला पुल ?
  • किसकी इजाजत से पुल खोला गया?
  • पुल पर क्षमता से ज्‍यादा लोग कैसे पहुंंचे ?
  • भीड़ काबू करने के इंतजाम क्‍या थे या थे ही नहीं ?

डॉक्टरों के लिए चुनौती
मोरबी के मच्छू नदी में पुल गिरने से हुए हादसे के बाद डॉक्टरों के लिए भी सबसे बड़ी चुनौती रही। अस्पतालों में इतनी तादाद में आए घायलों के साथ ही शवों की भारी संख्या के लिए मेडिकल टीम को काफी संघर्ष करना पड़ा। हादसे में घायलों का पता लगाना रिश्तेदारों के साथ-साथ उन लोगों के लिए भी एक कठिन काम था, जिनके परिजन लापता थे। अपनी ग्यारह साल की बेटी को खो देने वाली मोना मोवर के लिए कोई सांत्वना पर्याप्त नहीं थी जो कि उनके दुख को कम कर सके। उनके पति और छोटे बेटे ने मच्छू नदी पर पुल गिरने के बाद मोरबी सिविल अस्पताल में अपने जीवन के लिए संघर्ष करते दिखे।

मोना की बहन सोनल, जो कि एक एनजीओ के साथ काम करती हैं, उन्होंने हमारे सहयोगी टीओआई को बताया कि “मैं अपनी बहन के साथ हूं और उसने रोना बंद नहीं किया है। मेरा भतीजा और देवर अपनी जिंदगी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हमारे रिश्तेदार अस्पताल में हैं और मैं अपनी बहन को घर ले जाने की कोशिश कर रही हूं।” इस परिवार की दुर्दशा सरकारी अस्पताल में असंख्य हृदय विदारक दृश्यों का महज एक हिस्सा है। जहां एक ओर पुल ढहने के पीड़ितों के परिवारों ने बेसुध होकर रोते दिखे तो वहीं रविवार देर रात तक अस्पताल में शवों की बाढ़ सी आती रही।

आरिफशा शाहमदार अपनी पत्नी और पांच साल के बेटे के शव के बगल में बैठे अपने घावों को सहला रहे थे। उनकी छह साल की बेटी अभी भी लापता है। जहां एक ओर आरिफशा की पत्नी और बेटे की मौत हो गई और उनकी बेटी लापता है। तो वहीं जामनगर से मोरबी आई उनकी बहन की भी इस हादसे में मौत हो गई और उसके भी दो बच्चे लापता हैं। जब कि आरिफ के भाई का एक बच्चा भी अभी लापता है।

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साल 1979 में भी दिखा था ऐसा ही मंजर
मोरबी निवासी और एक एनजीओ की सदस्य सुमित्रा ठक्कर का कहना है कि उनके सहयोगी घायल रिश्तेदारों के लिए डॉक्टर खोजने के लिए संघर्ष कर रहे थे। सुमित्रा ने कहा “आज रविवार है और मुझे बताया गया कि त्योहारों के कारण, निजी अस्पतालों में भी कम डॉक्टर थे। आज का टूटना हमें 1979 की मच्छु बांध त्रासदी की यादें दिलाता है। 1979 की आपदा में हजारों लोगों के मारे जाने की आशंका थी जब भीषण बारिश के बाद मच्छु नदी पर बना बांध टूट गया था।”

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