Delhi Crime: ‘मिसिंग’ मतलब सिर्फ लड़कियों का ‘भागना’ नहीं है, बड़े क्राइम की दस्कत दिखा रहे हैं ये आंकड़े
हाइलाइट्स
- एक्सपर्ट का कहना है कि ऑर्गेनाइज़ड क्राइम से इनकार ही लापरवाही है
- ट्रैफिकिंग को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है, इसलिए बढ़ रहे हैं मामले
- एक्सपर्ट का कहना है कि भागने के केस ही आगे ट्रैफिकिंग में बदल जाते हैं
रिकवरी रेट आधे से भी कम
नैशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में 2021 में 18 साल से छोटी गुमशुदा लड़कियां 7805 लड़कियां गायब हुईं, जिनमें से 1624 यानी 49.3% ही ट्रेस हो पाईं। 2019 से 2021 यानी तीन सालों में 22919 मिसिंग केस की फाइल में हैं। वहीं, 2021 में 29676 महिलाएं गायब हुईं, जिनमें से रिकवर 10345 सिर्फ 34.9% है। तीन सालों में गायब महिलाओं की संख्या 61504 है।
दिल्ली से भी होती है ट्रैफिकिंग
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के चेयरपर्सन प्रियंक कानूनगो कहते हैं, मिसिंग लड़कियों में ज्यादातर ट्रैफिकिंग के मामले हैं, जिसे पुलिस नहीं मानती। गुमशुदा लड़कियां ट्रेस इसलिए नहीं हो पा रही हैं, क्योंकि ट्रैफिकिंग को ऑर्गनाइज्ड क्राइम के तौर पर गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, बंगाल में बच्चियों के गायब होने की वजह ट्रैफिकिंग है और दिल्ली में तो प्लेसमेंट एजेंसियां इसके लिए जिम्मेदार हैं। इनके जरिए ना सिर्फ वो दिल्ली लायी जाती हैं, बल्कि यहां से भी आगे जाती भी हैं। सरकार का इन पर कोई कंट्रोल नहीं है, जबकि कई बार एनसीपीसीआर दिल्ली सरकार को लिख चुका है। वह कहते हैं, दिल्ली में ट्रैफिकिंग के मामले कम नहीं हैं। 18 साल से पहले लड़की की शादी नहीं हो सकती है और पॉक्सो एक्ट भी उन्हें बचाता है, तो मिसिंग मामलों को सिर्फ भागने के मामले क्यों बताया जा रहा है? हमने देखा है ज्यादातर मामले ट्रैफिकिंग और बहला-फुसलाकर ले जाने के हैं, सिर्फ 20% प्रेम प्रसंग के मामले होते हैं।
‘भागने’ के केस आगे ट्रैफिकिंग में बदल सकते हैं
हक- सेंटर फॉर चाइल्ड राइट्स की डायरेक्टर भारती अली हक कहती हैं, गुमशुदा बच्चों के मामलों में बड़ा हिस्सा गुमशुदा लड़कियों का है। दिल्ली में ऐलोपमेंट यानी परिवार से भागने के मामले ज्यादा हैं, मगर इसमें ज्यादातर की उम्र 15 से 17 के बीच होती हैं। मेरा मानना है कि दिल्ली में अगर 70% मामले ऐलोपमेंट के हैं, तो 30% केस ट्रैफिकिंग के भी है। दूसरी बात यह भी है कि अगर ऐलोपमेंट के केस ट्रैक नहीं करेंगे तो ट्रैफिकिंग के मामले सामने नहीं आएंगे। यह आंकड़ा बदल भी सकता है। कम उम्र की लड़कियों को बहला-फुसलाकर, प्यार का झांसा देकर भगा ले जाना और फिर बेचने या रेप के कई मामले सामने आते हैं। ये अलग बात है कि दिल्ली पुलिस इन्हें ट्रैक नहीं कर पा रही है, जिसके पीछे वजह ढिलाई के साथ उनकी कुछ सीमाएं भी हैं।
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