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शार्क से भी तीन गुना ज्‍यादा खतरनाक है इंसान, जानिए क्‍यों रिसर्चर्स कह रहे हैं ऐसी बात

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हाइलाइट्स

  • वैज्ञानिकों के मुताबिक इंसान लगभग एक तिहाई जानवरों का शोषण करता है
  • यह शोषण कभी भोजन, कभी दवाईयों तो कभी पालतू जानवर के तौर पर होता है
  • जंगली जानवरों का ज्‍यादा प्रयोग बायोडाइवर्सिटी और इकोलॉजी के लिए हानिकारक होगा
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लंदन: अक्‍सर इंसानों के बारे में कहा जाता है कि वह जानवरों से भी ज्‍यादा खतरनाक है। उसे हमेशा से एक खतरनाक शिकारी के तौर पर भी माना जाता है। मगर पहली बार वैज्ञानिकों ने एक रिसर्च करके इस बारे में कोई निष्‍कर्ष भी निकाला है। पहली बार वैज्ञानिकों ने साबित किया है कि इंसान वाकई खतरनाक है। यूके के वैलिंगफोर्ड, ऑक्‍सफोर्डशायर में स्थित सेंटर फॉर इकोलॉजी एंड हाइड्रोलॉजी में हुई एक स्‍टडी के बाद वैज्ञानिक इस निष्‍कर्ष पर पहुंचे हैं कि इंसान शार्क जैसे जानवरों से तीन गुना ज्‍यादा खतरनाक है।


अलग-अलग तरह से प्रयोग करने की तरकीब

वैज्ञानिकों के मुताबिक इंसान कभी भोजन, कभी दवाईयों तो कभी पालतू जानवर के तौर पर लगभग एक तिहाई जानवरों का शोषण करता है। इस वजह से अब दुनिया में करीब आधे जानवरों के गायब होने का खतरा बढ़ जाता है। उनका कहना था कि इंसानों की यह प्रवृत्ति उसे सफेद शार्क जैसे प्राकृतिक शिकारियों की तुलना में सैकड़ों गुना अधिक खतरनाक बना देती है। साथ ही उसकी यह आदत प्रकृति के साथ-साथ इकोलॉजी के लिए भी गंभीर परिणामों की चेतावनी की तरह है। डॉ. रॉब कुक ने इस स्‍टडी के बारे में कहा,’ हमें जो कुछ भी रिसर्च में मिला उसने हमें हैरान कर दिया था। मनुष्यों के पास जानवरों के प्रयोग करने की बहुत ज्‍यादा तरकीबें हैं। लेकिन हमें दुनिया भर में स्थायी मानव-प्रकृति संबंधों को और मजबूत करने की जरूरत है।’

39 फीसदी जानवर गायब होने की तरफ
रिसर्चर्स ने करीब 50,000 विभिन्न जंगली स्तनधारियों, पक्षियों, सरीसृपों, उभयचरों और मछलियों के डेटा पर अध्‍ययन किया था। ये वो जानवर हैं जिन्हें मनुष्य भोजन, दवाओं या कपड़ों के लिए काटते हैं या फिर व्यापार के लिए जंगल से पकड़ कर लाते हैं। उन्होंने पाया कि जानवरों की 14,663 प्रजातियों का उपयोग या व्यापार किया जाता है। इनमें से 39 फीसदी ऐसे जानवर हैं जो गायब होने की तरफ हैं।


300 गुना ज्‍यादा खतरनाक

इंसान का असर सफेद शार्क, शेर या बाघ जैसे खतरनाक शिकारी जानवरों की तुलना में 300 गुना ज्‍यादा है। उनका कहना था कि इंसान एंथ्रोपोसीन में प्रवेश कर रहे हैं। यह वह अवधि जिसके दौरान मानव गतिविधि का जलवायु और पर्यावरण पर प्रमुख प्रभाव बन रहा है। रिसर्च में यह चेतावनी दी गई है कि जंगली जानवरों का ज्‍यादा प्रयोग बायोडाइवर्सिटी और इकोलॉजी के लिए हानिकारक होगा और इसके गंभीर परिणाम होंगे।

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