Vipakshi ekta ki baithak: कांग्रेस के ‘वकील’ बनेंगे नीतीश कुमार, ममता-केजरीवाल और स्टालिन को मनाने का क्या होगा फॉर्म्युला?
हाइलाइट्स
- नीतीश कुमार के प्रयास से पटना में हो रही विपक्षी एकता की बैठक
- नीतीश विपक्षी नेताओं को समझाएंगे कि 2024 में कांग्रेस को साथ लेकर चलें
- देखना होगा कांग्रेस से समझौते पर कितना तैयार होते हैं केजरीवाल, ममता और एमके स्टालिन
- बैठक में कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बनाने पर भी बन सकती है सहमति
पटना: विपक्षी एकता मुहिम के सूत्रधार नीतीश कुमार के लिए 23 जून की बैठक काफी महत्वपूर्ण होने जा रही है। यह बैठक आने वाले दिनों में तय करेगा कि देश की बागडोर थामने के लिए विपक्ष कितना मजबूत है और आखिर नीतीश कुमार की भूमिका क्या होगी? अब तक मिली जानकारी के अनुसार 23 जून को उम्मीद से ज्यादा विपक्ष के निर्णायक नेताओं की बैठक होगी, जहां चुनावी समीकरण के साथ साथ मुद्दे तय होंगे और कॉमन मिनिमम प्रोग्राम को लेकर सर्वदलीय सहमति बनाने की कोशिश भी होगी।
लालू-नीतीश मुलाकात के निहितार्थ
विपक्षी एकता मुहिम के ठीक पहले नीतीश कुमार से लालू यादव का मिलना कोई ओपचारिक मुलाकात नहीं। सूत्रों की माने तो लालू यादव राजनीति का वह सिरा लेकर गए हैं, जहां कांग्रेस की एडवोकेसी के साथ-साथ तेजस्वी यादव की भूमिका को भी राज्य के परिपेक्ष्य में रखा जाएगा। दरअसल, लालू प्रसाद के इस अचानक मुलाकात का लक्ष्य कांग्रेस के रणनीतिकारों का सुझाया प्रस्ताव है, जिसमें क्षेत्रीय क्षत्रपों के बीच बेहतर संवाद कायम कर कांग्रेस की स्वीकार्यता वह भी कांग्रेस की शर्त पर रखा जाए। ऐसा इसलिए भी कि कर्नाटका जीत के बाद कांग्रेस का मनोबल बढ़ा हुआ है।
कांग्रेस और ममता बनर्जी
पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और ममता के बीच सबकुछ ठीक नहीं है। पिछले दिनों कांग्रेस के एक विधायक को तृणमूल में मिला लेने के बाद कांग्रेस के भीतर काफी नाराजगी है। वहीं ममता भी कांग्रेस के उस बयान से काफी नाराज है, जहां कांग्रेस और सीपीएम के बीच राजनीतिक समझौता के आसार इन दिनों काफी बढ़ गए हैं। ऐसे में राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस अपनी सम्मानजनक सीटों की हिस्सेदारी की आश्वस्ति लालू प्रसाद से चाहती है।
विपक्षी एकता और दक्षिण के राज्य
सबसे बड़ी मुश्किल तो दक्षिण के राज्यों से आ रही है। कांग्रेस के बढ़ते कदम से दक्षिण के क्षेत्रीय क्षत्रप एक अनजाने भय से ग्रस्त हैं। राहुल गांधी की पद यात्रा से कांग्रेस को मिली शक्ति क्षेत्रीय दलों को अपनी राजनीत पर भी संकट सा दिख रहा है। खास कर तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु में। तेलंगाना के सीएम केसी राव का तो थर्ड फ्रंट का फॉर्म्युला पहले से ही विपक्षी एकता की मुहिम को खंडित कर गया। अब नीतीश कुमार का द्रमुक नेता और तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री एम करुणानिधि की स्मृति में उनके पैतृक शहर तिरुवरूर में बनाये गये ‘कलैगनार कोट्टम’ का उद्घाटन समारोह में नहीं जाने के बाद एक नई चर्चा शुरू हो गई है। सूत्र बता रहे हैं कि तमिलनाडु के सीएम स्टालिन की नाराजगी कांग्रेस को लेकर बढ़ गई है।
कॉमन मिनिमम प्रोग्राम (सीएमपी) और विपक्ष
इस बैठक की एक बड़ी उपलब्धि हो सकती है- सबकी सहमति के साथ कॉमन मिनिमम प्रोग्राम पर आम सहमति बन सके। पर संभावना यह व्यक्त की जा रही हैं कि सभी दलों की सहमति नहीं हो सकती है। कम से कम इस बैठक में तो नहीं। खासकर अरविंद केजरीवाल या ममता बनर्जी यहां तक की स्टालिन भी तैयार नहीं है। वाम दल की भी असहमति हैं। इनका मानना है कि कॉमन मिनिमम प्रोग्राम चुनाव के बाद सत्ता को सही ढंग से चलाने के लिए किया जाएगा। अभी तो तय करना है कि बीजेपी को किन मुद्दों पर घेरा जाए। दलों के बीच शीट शेयरिंग का कौन सा फॉर्म्युला कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टी के साथ क्षेत्रीय दल के लिए भी फिट करता है।
कांग्रेस के विरुद्ध आपातकाल की गोलबंदी और विपक्षी एकता
आपातकाल की गोलबंदी को बाढ़ के उस समय से जोड़ कर देखा गया जब एक ही नाव पर आदमी, सांप, बिच्छू सब सवार थे। तब क्या दक्षिणपंथी और क्या वाम दल सब एक छतरी जनता पार्टी के तले आ गए थे। एक झंडा, एक चुनाव चिन्ह। पर इस बार ऐसा नहीं है। कोशिश यह हो रही है कि एक सीट पर महागठबंधन का कोई एक ही उम्मीदवार खड़ा हो। उम्मीद है कि इस बैठक में मुद्दे के साथ सीट शेयरिंग का भी मसला हल हो जाए।
बहरहाल, नीतीश कुमार की विपक्षी एकता मुहिम का आगाज 23 जून को बिहार की धरती पर होने जा रहा है, जिसमें 15 दलों के शीर्ष नेताओं का आना तय माना जा रहा है। देश की राजनीति के परिपेक्ष्य में देखें तो इससे नीतीश कुमार की राजनीति का जो खालीपन आया है उसे अब एक नए अर्थों में मूल्यांकन के लिए खुद को सामने लाने जैसा है। देश की राजनीति के फलसफे पर नीतीश कुमार के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि तो साबित होने जा रही है। खासकर तब जब ये सर्वसम्मति से बीजेपी हटाओ मूवमेंट के कन्वेनर बन जाए।