ताकतवर करेंगे ‘मौज’, जरूरतमंद होंगे वंचित? OBC बिल से बढ़ सकती हैं आरक्षण की पेचीदगियां
नई दिल्ली
राज्यों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की जातियों की पहचान करने और सूची बनाने का अधिकार बहाल करने वाला ‘संविधान (127वां संशोधन ) विधेयक, 2021’ संसद के मॉनसून सत्र में दोनों सदनों में पारित हो चुका है। इसके बाद बिल को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद राज्य अपने यहां ओबीसी की सूची को खुद तैयार करा सकेंगे। इसके लिए अब राज्यों को केंद्र पर नहीं निर्भर रहना होगा।
टाइम्स ऑफ इंडिया में एक लेख में सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के फेलो डी. श्याम बाबू कहते हैं कि आप इस बिल के पारित होने को संघवाद की जीत के रूप में किसी को लुभा सकते हैं। यह विधेयक साल 2014 के बाद संसद के सबसे विभाजनकारी और हंगामेदार सत्र में पारित किया गया। यह दर्शाता है कि राजनीतिक दलों के लिए पिछड़े समुदायों के लिए आरक्षण का मुद्दा चुनावी रूप से कितना महत्वपूर्ण हो गया है।
लापरवाह सोशल इंजीनियरिंग के भयानक परिणाम
श्याम बाबू के अनुसार इस लापरवाह सोशल इंजीनियरिंग के परिणाम भयानक होंगे। यह अब सामान्य जाति की राजनीति नहीं है। सैकड़ों उपजातियां आरक्षण के लिए एक दूसरे से भिड़ेंगी। इससे सामाजिक-राजनीतिक उथल-पुथल मचेगी। कोई भी प्रमुख समूह कोटा की मांग कर सकता है और हासिल कर सकता है। अब तक ओबीसी का चयन संवैधानिक रूप से अनिवार्य आयोगों की तरफ से जटिल कवायद रही है। राज्यों को अधिकार मिलने के बाद यह एक राजनीतिक कवायद होगी। ऐसे में सबसे मजबूत और सबसे ऊंचा समूह ओबीसी बन सकता है।
समस्या को हल करने की बजाय बढ़ाया
उनका कहना है कि वर्तमान विधेयक और उसके 2018 के मूल अधिनियम से कुछ भी हल नहीं होगा। वास्तव में सरकार के इस फैसले ने पहले से मौजूद समस्या को हल करने की बजाय उसे बढ़ा दिया है। जरा इस पर विचार करें, उप-जातियों के लिए उप-वर्गीकरण, कोटा के भीतर कोटे की मांग बस थोड़े समय की बात है। इसके अलावा, यदि ओबीसी को एससी / एसटी के साथ बराबरी की जाती है, तो राज्य विधानसभाओं और लोकसभा में ओबीसी कोटा की मांग उठने में कितना समय लगेगा?
राज्यों में उठ रही आरक्षण की मांग पूरी होगी
डी. श्याम बाबू का कहना है कि अब एक राज्य सरकार किसी भी समूह को ओबीसी के रूप में चुन सकती है। साथ ही बाकी को बचे लोगों को यह विश्वास दिला सकती है कि वह संविधान के तहत अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के समान सुरक्षा और लाभों का हकदार है। इससे कई समूहों (जैसे राजस्थान में गुर्जरों) द्वारा एसटी में शामिल होने की मांगों को भी पूरा किया जा सकता है।
ओबीसी आरक्षण का उद्देश्य पूरा नहीं होगा
उनका कहना है कि सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (एसईसीसी) का एक नया दौर ओबीसी कोटा के उद्देश्यों की पूर्ति नहीं कर सकता है। इसकी वजह है कि ओबीसी को चुनने की कसौटी में आर्थिक पिछड़ापन शामिल नहीं है। यह सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन तक सीमित है। इसलिए, दशकीय जनगणना में अब जाति को शामिल करना पड़ सकता है।