हक्कानी नेटवर्क बनाम मुल्ला बरादर, जानें क्यों तालिबान के अंदर छिड़ी है जंग
काबुल
अफगानिस्तान पर बंदूक के बल पर कब्जा करने वाले तालिबानी आतंकियों के शीर्ष नेतृत्व में अब आपस में ही ‘जंग’ शुरू हो गई है। तालिबानी नेतृत्व में विवाद का केंद्र बने हैं मुल्ला बरादर और पाकिस्तानी पिट्ठू हक्कानी नेटवर्क। तालिबान ने अब खुद माना है कि मुल्ला बरादर और हक्कानी नेटवर्क के एक कुख्यात मंत्री खलील उर रहमान के बीच तीखी बहस हो गई थी। यही नहीं दोनों के समर्थकों में हाथापाई भी हो गई। इससे नाराज होकर मुल्ला बरादर अब कंधार चला गया है जिसे तालिबान की जन्मभूमि कहा जाता है। आइए जानते हैं कि तालिबान के अंदर चल रही इस जंग की वजह क्या है….
तालिबान शासन आने से ठीक पहले प्रधानमंत्री पद के सबसे तगड़े दावेदार कहे जाने वाले मुल्ला बरादर का पता नहीं चल रहा है। सोशल मीडिया में चल रही अटकलों में कहा जा रहा है कि हक्कानी नेटवर्क के नेताओं के साथ संघर्ष के बाद मुल्ला बरादर या तो मारा गया है या फिर बुरी तरह से घायल है। तालिबान की अंतरिम सरकार के ऐलान के बाद मुल्ला बरादर को सार्वजनिक रूप से देखा नहीं गया है। इससे अटकलों को और ज्यादा बल मिल रहा है। उधर, तालिबान ने एक ऑडियो जारी करके कहा कि मुल्ला बरादर ठीक हैं और वह कंधार में हैं।
जानें क्या है बरादर और हक्कानी के बीच विवाद की वजह
उधर, अंतरिम सरकार का ऐलान होने के बाद भी तालिबान के सुप्रीम लीडर और कमांडर इन चीफ हैबतुल्ला अखुंदजादा भी अभी तक सार्वजनिक रूप से सामने नहीं आए हैं। तालिबान की ओर से कहा जा रहा है कि वह भी कंधार में ही मौजूद हैं और जल्द ही सार्वजनिक रूप से सामने आएंगे। मुल्ला बरादर कतर की राजधानी दोहा में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख थे। यही पर अमेरिका और तालिबान के बीच बातचीत शुरू हुई और अंत में समझौता हुआ। इसके बाद ऐसी चर्चा शुरू हो गई थी कि बरादर ही पीएम बनेगा। हालांकि ऐसा हुआ नहीं और उसे डेप्युटी पीएम पद से ही संतोष करना पड़ा है।
इसके बाद मुल्ला बरादर और हक्कानी नेटवर्क के बीच विवाद बढ़ने की खबरें तेज हो गईं। मुल्ला बरादर के लापता होने की खबर को उस समय हवा मिली जब कतर के विदेश मंत्री की बेहद अहम यात्रा के दौरान मुल्ला बरादर नहीं दिखाई दिया। अफगानिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार हिज्बुल्ला खान कहते हैं कि इस पूरे विवाद की जड़ में अमेरिका पर जीत की वजह है। तालिबानी नेतृत्व का मानना है कि उन्हें अमेरिका पर जीत कूटनीति की वजह से मिली है और उधर, हक्कानी नेटवर्क का दावा है कि हमें अफगानिस्तान पर जीत युद्ध के जरिए मिली है।
हिज्बुल्ला खान कहते हैं कि यही तालिबानी नेताओं और हक्कानी नेटवर्क के बीच विवाद की मुख्य वजह है। दोनों पक्ष अपने-अपने दावे के जरिए अपना अधिकार बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। इसी से उनके मतभेद बढ़ रहे हैं। तालिबानी नेतृत्व में गंभीर मतभेद के तार वर्ष 2016 की शूरा से भी जुड़े हुए हैं। इसके तहत एक समझौता हुआ था जिसमें तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर के बेटे मुल्ला याकूब और हक्कानी नेटवर्क के नेता सिराजुद्दीन हक्कानी को उप नेता बनाया गया था। ये दोनों ही अब नई सरकार में हैं और मुल्ला याकूब को रक्षा मंत्रालय तथा सिराजुद्दीन हक्कानी को गृह मंत्रालय मिला है।हालांकि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के प्रमुख जनरल फैज की काबुल यात्रा के बाद कतर गुट को अब अंतरिम सरकार में किनारे लगा दिया गया है। इसी वजह से मुल्ला बरादर और शेर मोहम्मद नाराज हैं। पाकिस्तान ने अब हक्कानी नेटवर्क की मदद से अप्रत्यक्ष रूप से अफगानिस्तान में अपनी सरकार बना ली है और महत्वपूर्ण विभागों पर कब्जा जमा लिया है।