चीनी जासूसों ने की अफगानिस्तान के बगराम एयरपोर्ट की रेकी, भारत की बढ़ी टेंशन
हाइलाइट्स
- पाकिस्तान और चीन ने अफगानिस्तान पर अपनी पकड़ और मजबूत करनी शुरू कर दी है
- आईएसआई चीफ ने अपने पालतू सिराजुद्दीन हक्कानी को गृहमंत्री की कुर्सी दिलवा दिया है
- इस बीच अब खुलासा हुआ है कि चीन के जासूसों ने बगराम एयरबेस का गुपचुप दौरा किया
काबुल
अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं की वापसी और तालिबान के खूनी कब्जे के बाद पाकिस्तान और चीन ने अब अपनी पकड़ और मजबूत करनी शुरू कर दी है। तालिबान की अंतरिम सरकार के गठन से ठीक पहले आईएसआई चीफ ने काबुल की यात्रा की और अपने पालतू सिराजुद्दीन हक्कानी को गृहमंत्री की कुर्सी दिलवा दिया। इस बीच अब खुलासा हुआ है कि चीन के एक प्रतिनिधिमंडल ने पिछले हफ्ते अमेरिका के सबसे बड़े सैन्य अड्डे रहे बगराम एयरबेस का गुपचुप दौरा किया और टोह लिया है। इस खुलासे भारत की टेंशन बढ़ गई है।
सीएनएन न्यूज 18 की रिपोर्ट के मुताबिक यह अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है कि चीन की खुफिया एजेंसी और सेना के उच्च अधिकारियों का प्रतिनिधिमंडल क्यों बगराम एयरबेस गया था। हालांकि यह पता चला है कि वे कथित रूप से अमेरिकी लोगों के खिलाफ साक्ष्य और आंकड़े इकट्ठा कर रहे थे। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि चीनी जासूस वहां पर तालिबान और पाकिस्तान की मदद से एक ‘खुफिया केंद्र’ बनाने गए थे ताकि उनके शिंजियांग प्रांत में उइगर मुस्लिमों को दी जाने वाली किसी मदद पर कड़ी नजर रखी जा सके।
‘पूरे क्षेत्र में आतंकवाद को बढ़ावा देगा चीनी अड्डा’
सूत्रों के मुताबिक इस दौरे में रोचक बात यह रही कि ये चीनी जासूस पाकिस्तान के रास्ते सड़क मार्ग से अफगानिस्तान आए थे ताकि काबुल एयरपोर्ट पर उनके ऊपर नजर न रखी जा सके। उधर, चीनी जासूसों के बगराम एयरफील्ड के दौरे से भारत की चिंता गंभीर रूप से बढ़ गई है। भारत सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों ने कहा, ‘हम चीनी दल के दौरे की पुष्टि कर रहे हैं। यह गंभीर है…यदि उन्होंने पाकिस्तान के साथ मिलकर वहां कोई ठिकाना बनाया तो। यह इस पूरे क्षेत्र में आतंकवाद और अस्थिरता को बढ़ावा देगा।’
इससे पहले आईएसआई के चीफ ने इसी महीने रूस, चीन, ईरान और ताजिकिस्तान के खुफिया प्रमुखों से मुलाकात की थी और उन्हें तालिबान सरकार तथा बदलती विश्व व्यवस्था के बारे में बताया था। सूत्रों के मुताबिक इस दौरान आईएसआई चीफ ने आरोप लगाया था कि भारत ने पिछली गनी सरकार में उनके खिलाफ आतंकवाद को बढ़ावा दिया। बता दें कि चीन उन कुछ चुनिंदा देशों में शामिल है जिसने तालिबान के साथ राजनयिक संबंध को स्थापित किया है।