ईरान ने भारत को दिया 3 अरब डॉलर का झटका, जानिए क्या है पूरा मामला
हाइलाइट्स:
- ईरान ने फारसी ब्लॉक के फरजाद-बी गैस फील्ड से भारत को बाहर का दरवाजा दिखाया
- भारत की सरकारी तेल कंपनियों के कंसोर्टियम ने 2008 में यह गैस भंडार खोजा था
- ईरान ने एक दशक तक चली बातचीत के बाद भारत को इस परियोजना से बाहर कर दिया
- ईरान ने इस गैस भंडार से उत्पादन के लिए पेट्रोपार्स के साथ डील पर हस्ताक्षर किए
नई दिल्ली
भारत को ईरान में 3 अरब डॉलर की गैस परियोजना से हाथ धोना पड़ा है। ईरान ने फारसी ब्लॉक के फरजाद-बी गैस फील्ड से भारत को बाहर का दरवाजा दिखा दिया है। भारत की सरकारी तेल कंपनियों की अगुवाई वाले कंसोर्टियम ने 2008 में यह गैस भंडार खोजा था। ईरान ने इस कंसोर्टियम के साथ करीब एक दशक तक चली बातचीत के बाद भारत को इस परियोजना से बाहर कर दिया।
ईरान की सरकारी तेल कंपनी एनआईओसी (NIOC) ने इस गैस भंडार से उत्पादन के लिए सोमवार को पेट्रोपार्स के साथ 1.7 अरब डॉलर की डील पर हस्ताक्षर किए। ईरान की न्यूज एजेंसी शना के मुताबिक यह डील ईरान के पेट्रोलियम मिनिस्टर Bijan Zangeneh की उपस्थिति में हुई। यह दूसरा मौका है जब ईरान में भारत के निवेश प्रस्ताव को झटका लगा है। पिछले साल ईरान ने चाबहार रेलवे लिंक परियोजना के लिए भारत के 2 अरब डॉलर के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था और खुद ही इसे बनाने का फैसला किया था। दोनों देशों के शीर्ष नेतृत्व ने इस डील को आगे बढ़ाने पर प्रतिबद्धता जताई थी।
ईरान की मंशा
फरजाद-बी को लेकर हो रही बातचीत में शुरू से ही गतिरोध था। ओएनजीसी विदेश की अगुवाई वाले भारतीय कंसोर्टियम ने 2002 में एक्सप्लोरेशन एग्रीमेंट पर साइन किए थे और 40 करोड़ डॉलर का निवेश किया था। गैस भंडार की खोज के एक साल बाद 2009 में ईरान ने इस एग्रीमेंट को एक्सपायर होने दिया था। अभी यह साफ नहीं है कि भारतीय कंसोर्टियम अपने निवेश की वसूली कैसे करेगा। डील के लिए कई डेडलाइन मिस हुई थी। भारत ने डील की शर्तों में बार-बार बदलाव और इसमें देरी के लिए ईरान को जिम्मेदार ठहराया।
टाइम्स ऑफ इंडिया ने 30 मई, 2017 को सबसे पहले खबर दी थी कि ईरान इस परियोजना को किसी और देश को देने की फिराक में है। उसी साल 7 जून को टीओआई ने खबर दी थी कि ईरान फरजाद-बी के लिए रूस की कंपनी गैजप्रॉम के साथ एक बेसिक एग्रीमेंट कर रहा है। भारतीय अधिकारियों के मुताबिक ईरान की मंशी मार्च 2017 में ही साफ हो गई थी जब उसने कंसोर्टियम के फील्ड डेवलपमेंट प्लान पर कोई जवाब नहीं दिया। एनआईओसी के स्कोप ऑफ वर्क घटाने के बाद इसे 4 अरब डॉलर से 3 अरब डॉलर कर दिया गया था। 2011 में सौंपे गई मूल योजना में 11 अरब डॉलर के निवेश का लक्ष्य था जिसमें जहाजों से गैस के निर्यात के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर भी शामिल था।
क्या कहा था धर्मेंद्र प्रधान ने
इस डील में देरी से गुस्साए भारत ने अपनी तेल कंपनियों को ईरान से कच्चे तेल के आयात में 20 फीसदी कटौती करने को कहा। इसके जवाब में ईरान ने भारतीय रिफाइनर्स के लिए पेमेंट विंडो 90 दिन से घटाकर 60 दिन कर दी और ओशियन फ्रेट पर डिस्काउंट 80 फीसदी से घटाकर 60 फीसदी कर दिया। ईरान की गैजप्रॉम के साथ डील के बाद पेट्रोलियम मिनिस्टर धर्मेंद्र प्रधान ने 20 जून 2017 को कहा था कि अगर यह परियोजना भारत को नहीं मिलती है तो कोई बात नहीं। उन्होंने कहा था, ‘मुझे अपने निवेश पर आश्वासन चाहिए। ईरान एक सॉवरेन कंट्री है। हमने कठिन दिनों में ईरान का साथ दिया और हम ईरान से भी यही उम्मीद करते हैं। हम तभी निवेश करेंगे जब हमें इसमें रिटर्न दिखेगा।’