‘चार दिन की जिंदगी में बिहारियों के लिए सारे दिन छठ के ही हैं’
छठ, यानी उस सामाजिक समरसता को सहेजने वाला एक महापर्व जिसके लिए एक पूरे राज्य की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक गरिमा को रौंद दिया गया। किसी भी बिहारी के लिए इससे अधिक वेदना कुछ और नहीं हो सकती कि माई, बाबूजी, भाभी और बड़की माई जैसे तमाम रिश्तों से दूर रह कर छठ को टेलिविजन, फेसबुक और यूट्यब पर जीना पड़े। बहुतों के लिए तो छठ का मतलब सिर्फ ठेकुआ का प्रसाद है।
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