अपनों के हाथों मारा गया भारत को ‘खुरासान’ बनाने का सपना देखने वाला IS-K चीफ
हाइलाइट्स
- आईएस खुरासान के पूर्व सरगना असलम फारूकी की अफगानिस्तान में गोली मारकर हत्या
- असलम फारूकी मार्च 2020 में हुए काबुल में गुरुद्वारे पर हमले का मास्टरमाइंड था
- यही नहीं असलम फारूकी भारत को भी खुरासान में शामिल करने का सपना देखता था
काबुल
अफगानिस्तान में तहरीक-ए-तालिबान के प्रवक्ता की हत्या के कुछ दिन बाद ही अब इस्लामिक स्टेट खुरासान (IS-K) के पूर्व सरगना असलम फारूकी की देश के उत्तरी इलाके में गोली मारकर हत्या कर दी गई है। फारूकी मार्च 2020 में काबुल में गुरुद्वारे पर हमले का मास्टरमाइंड था। यही नहीं वह भारत को भी खुरासान में शामिल करने का सपना देखता था। असलम फारूकी के मौत की पुष्टि स्थानीय लोगों और आतंकी के परिवार के सदस्यों ने भी की है।
बताया जा रहा है गोलीबारी की यह घटना उत्तरी अफगानिस्तान में रविवार को हुई है। यह आतंकी पाकिस्तान के हिंसा प्रभावित ओराकजई इलाके का रहने वाला था। उसका शव मंगलवार को उसके गृह नगर पहुंच जाएगा। फारूकी की जगह पर अबू उमर खुरासानी जुलाई 2019 से आईएस के का सरगना बन गया है। आईएस के आतंकी संगठन को इन दिनों तालिबान के साथ अफगानिस्तान के नांगरहार प्रांत में जंग लड़ना पड़ रहा है।
आईएस खुरासान के पूर्व सरगना की आपसी संघर्ष में मौत
जांच में यह भी खुलासा हुआ है कि फारूकी की मौत एक संघर्ष में हुई है। हालांकि ऐसी भी खबरें हैं कि आईएस खुरासान के पूर्व सरगना की मौत आपसी संघर्ष में हुई है। इससे पहले टीटीपी के प्रवक्ता खालिद बाल्टी की हत्या कर दी गई थी। वह भी पाकिस्तान का रहने वाला था। बता दें कि असलम फारूकी काबुल में एक सिख गुरुद्वारे और एक अस्पताल में हुए नरसंहार सहित कई हमलों का मास्टरमाइंड था। ISKP ने काबुल गुरुद्वारे हमले की जिम्मेदारी लेते हुए कश्मीर के मुसलमानों के लिए बदला लेने का हवाला दिया था। इसमें एक भारतीय नागरिक सहित कई अफगान सिख मारे गए थे।
आईएसकेपी के आतंकी काबुल में हक्कानी नेटवर्क के साथ हमले कर रहे हैं। दोनों संगठन पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजेंसी ISI से जुड़े हुए हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, तालिबान नेतृत्व की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखने के लिए आईएसआई आईएसकेपी और हक्कानी नेटवर्क का इस्तेमाल कर रही है। असलम फारूकी को पिछले साल अप्रैल में अफगान सुरक्षा बलों ने गिरफ्तार किया था। लेकिन, जब तालिबान ने 15 अगस्त को काबुल पर कब्जा कर लिया, तो उन्होंने बगराम जेल से सभी आतंकवादियों को रिहा कर दिया। फारूकी को भी रिहा कर दिया गया था।
तालिबान ने असलम फारूकी को बगराम जेल से रिहा किया
अफगान सुरक्षा बलों की हिरासत में रहते हुए असलम फारूकी ने आईएसआई के साथ अपने संबंधों को कबूल किया था। लिहाजा, पाकिस्तान उसके प्रत्यर्पण के लिए बेताब था। इसे तत्कालीन अफगान सरकार ने मना कर दिया था। तालिबान का दावा था कि आईएसकेपी उसका कट्टर दुश्मन है, लेकिन दिलचस्प बात यह थी कि तालिबान ने असलम फारूकी को बगराम जेल से रिहा कर दिया।
इस्लामिक स्टेट ने आधिकारिक तौर पर जनवरी 2015 में खुरासान प्रांत (फारसी साम्राज्य का एक ऐतिहासिक क्षेत्र, जिसमें ईरान, मध्य एशिया, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के हिस्से शामिल हैं) या ISIS-K या ISKP के नाम से अपने अफगान सहयोगी सगंठन के गठन की घोषणा की थी। फारूकी पहले पाकिस्तान स्थित आतंकी समूहों लश्कर-ए-झांगवी (LEJ), लश्कर-ए-तैयबा (LET), और फिर तहरीक-ए-तालिबान (TTP) आतंकी समूह से जुड़ा था। फारूकी ममोजई जनजाति से संबंध रखता है। वह पाक-अफगान सीमा पर ओरकजई एजेंसी क्षेत्र से है।