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‘ईश्वर न तो पुजारी, न किसान वह सबमें है’, नारायण गुरु कौन जिन पर बनी झांकी गणतंत्र परेड से खारिज

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हाइलाइट्स

  • गणतंत्र दिवस परेड में केरल की झांकी को जगह नहीं मिली, जानिए क्या है वजह
  • नारायण गुरु पर आधारित थी केरल की झांकी, रक्षा मंत्रालय से नहीं मिली मंजूर
  • रक्षा मंत्रालय ने नारायण गुरु की झांकी को आदि शंकराचार्य से बदलने पर जोर दिया
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तिरुअनंतपुरम
गणतंत्र दिवस परेड में केरल के बाद पश्चिम बंगाल की झांकी को जगह नहीं मिली है। ममता बनर्जी ने पीएम नरेंद्र मोदी को खत लिखकर फैसले पर फिर से विचार की अपील की है। इससे पहले केरल की झांकी भी रिपब्लिक डे परेड से खारिज हो गई थी। इसे रक्षा मंत्रालय की मंजूरी नहीं मिली है। केरल की झांकी समाज सुधारक नारायण गुरु पर आधारित थी। आइए जानते हैं कौन थे नारायण गुरु…

नारायण गुरु समाज सुधारक होने के साथ दार्शनिक और आध्यात्मिक गुरु भी थे जिन्हें केरल में समाज सुधार के लिए जाना जाता है। उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान और सामाजिक समानता को बढ़ावा देने के लिए जाति-ग्रस्त समाज में अन्याय के खिलाफ एक सुधार आंदोलन का नेतृत्व किया।

जातिगत भेदभाव के खिलाफ थे
नारायण गुरु का जन्म केरल के तिरुअनंतपुरम के उत्तर में 12 किलोमीटर दूर एक छोटे से गांव में 22 अगस्त 1856 को हुआ था। इनके पिता किसान थे और मां गृहणी। बचपन से ही नारायण गुरु में समाज में मौजूद जातिगत भेदभाव का विरोध करते थे। यहां तक कि इस रवैये के लिए उन्होंने अपने रिश्तेदारों तक की आलोचना कर डाली।

प्रारंभिक क्षित्रा के बाद वह संस्कृत के महान विद्वान रमन पिल्लई के शिष्य बन गए। धीरे-धीरे नारायण गुरु सिद्ध पुरुष के रूप में प्रसिद्ध होने लगे। लोग उनसे आशीर्वाद के लिए आने लगे। नारायण गुरु ने एक मंदिर बनाने का विचार किया जहां किसी तरह का भेदभाव न हो और कोई भी दर्शन करने आ सके।

मंदिर बनवाने पर काफी विरोध झेला
दक्षिण केरल में नैयर नदी के किनारे नारायण गुरु ने मंदिर बनाया जिसे अरुविप्पुरम के नाम से जाना जाता है। उस समय जाति के बंधनों में जकड़े समाज में मंदिर को लेकर काफी विरोध हुआ। वहां के ब्राह्मणों ने इसे महापाप करार दिया था। तब नारायण गुरु ने कहा था, ‘ईश्वर न तो पुजारी है और न ही किसान। वह सबमें है।’

न सिर्फ मंदिर बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में उन्हों ने काफी सुधार किया। नारायण गुरु ने अपने कार्यकर्मों और उपदेशों से केरल की दमित और दलित वर्ग के लोगों में आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता पैदा की। पहले इन वर्गों के बच्चों पर सामान्य स्कूलों में पढ़ने पर प्रतिबंध था। नारायण गुरु के प्रयासों से आजादी से पहले ही यह प्रतिबंध हट गया।

केरल की झांकी क्यों हुई खारिज?
गौरतलब है कि केरल सरकार ने समाज सुधारक श्री नारायण गुरु और जटायु पार्क स्मारक की झांकी के लिए एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया, लेकिन रक्षा मंत्रालय ने इसे आदि शंकराचार्य में बदलने पर जोर दिया। इसी के साथ केरल की झांकी को गणतंत्र दिवस की परेड से खारिज कर दिया गया।

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