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अगस्त्य संहिता के अनुसार बिजली की खोज महर्षि अगस्त्य ने की थी

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हम सब यही जानते है कि बिजली का आविष्कार थॉमस एडिसन ने किया हैं. पर क्या आप जानते है की महर्षि अगस्त्य जो एक वैदिक ॠषि थे, उन्होंने एक श्लोक के द्वारा बिजली बनाने की विधि बताई थी.

एडिसन ने एक घटना का ज्रिक करते हुए कहा था एक रात वो संस्कृत का श्लोक का मतलब सोचते-सोचते सो गए, तभी रात के सपने में उन्हें उस श्लोक का मतलब समझ आया, जिससे उन्हें बिजली बनाने में मदद मिली.
श्लोक इस प्रकार है

संस्थाप्य मृण्मये पात्रे ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्‌. छादयेच्छिखिग्रीवेन चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥

दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:. संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्‌॥

-अगस्त्य संहिता

 

अगस्त्य संहिता में विद्युत का उपयोग इलेक्ट्रोप्लेटिंग (Electroplating)के लिए करने का भी विवरण मिलता है। उन्होंने बैटरी द्वारा तांबा या सोना या चांदी पर पॉलिश चढ़ाने की विधि निकाली अत: अगस्त्य को कुंभोद्भव (Battery Bone)भी कहते हैं।

अनने जलभंगोस्ति प्राणो दानेषु वायुषु। एवं शतानां कुंभानांसंयोगकार्यकृत्स्मृत:॥

-अगस्त्य संहिता

महर्षि अगस्त्य कहते हैं-सौ कुंभों (उपरोक्त प्रकार से बने तथा श्रृंखला में जोड़े गए सौ सेलों) की शक्ति का पानी पर प्रयोग करेंगे, तो पानी अपने रूप को बदलकर प्राणवायु (Oxygen)तथा उदान वायु (Hydrogen)में परिवर्तित हो जाएगा।

कृत्रिमस्वर्णरजतलेप: सत्कृतिरुच्यते। यवक्षारमयोधानौ सुशक्तजलसन्निधो॥

आच्छादयति तत्ताम्रं स्वर्णेन रजतेन वा। सुवर्णलिप्तं तत्ताम्रं शातकुंभमिति स्मृतम्‌॥

-अगस्त्य संहिता

अर्थात-कृत्रिम स्वर्ण अथवा रजत के लेप को सत्कृति कहा जाता है। लोहे के पात्र में सुशक्त जल (तेजाब का घोल) इसका सान्निध्य पाते ही यवक्षार (सोने या चांदी का नाइट्रेट) ताम्र को स्वर्ण या रजत से ढंक लेता है। स्वर्ण से लिप्त उस ताम्र को शातकुंभ अथवा स्वर्ण कहा जाता है। (इसका उल्लेख शुक्र नीति में भी है)

विद्युत तार :आधुनिक नौकाचलन और विद्युत वहन, संदेशवहन आदि के लिए जो अनेक बारीक तारों की बनी मोटी केबल या डोर बनती है वैसी प्राचीनकाल में भी बनती थी जिसे रज्जु कहते थे।

नवभिस्तस्न्नुभिः सूत्रं सूत्रैस्तु नवभिर्गुणः।

गुर्णैस्तु नवभिपाशो रश्मिस्तैर्नवभिर्भवेत्।

नवाष्टसप्तषड् संख्ये रश्मिभिर्रज्जवः स्मृताः।।

9तारों का सूत्र बनता है। 9 सूत्रों का एक गुण, 9 गुणों का एक पाश, 9 पाशों से एक रश्मि और 9, 8, 7 या 6 रज्जु रश्मि मिलाकर एक रज्जु बनती है।

आकाश में उड़ने वाले गर्म गुब्बारे : इसके अलावा अगस्त्य मुनि ने गुब्बारों को आकाश में उड़ाने और विमान को संचालित करने की तकनीक का भी उल्लेख किया है।

वायुबंधक वस्त्रेण सुबध्दोयनमस्तके।

उदानस्य लघुत्वेन विभ्यर्त्याकाशयानकम्।।

अर्थात :उदानवायु (Hydrogen)को वायु प्रतिबंधक वस्त्र में रोका जाए तो यह विमान विद्या में काम आता है। यानी वस्त्र में हाइड्रोजन पक्का बांध दिया जाए तो उससे आकाश में उड़ा जा सकता है।

“जलनौकेव यानं यद्विमानं व्योम्निकीर्तितं। कृमिकोषसमुदगतं कौषेयमिति कथ्यते। सूक्ष्मासूक्ष्मौ मृदुस्थलै औतप्रोतो यथाक्रमम्।।

वैतानत्वं च लघुता च कौषेयस्य गुणसंग्रहः। कौशेयछत्रं कर्तव्यं सारणा कुचनात्मकम्। छत्रं विमानाद्विगुणं आयामादौ प्रतिष्ठितम्।।

अर्थात उपरोक्त पंक्तियों में कहा गया है कि विमान वायु पर उसी तरह चलता है, जैसे जल में नाव चलती है। तत्पश्चात उन काव्य पंक्तियों में गुब्बारों और आकाश छत्र के लिए रेशमी वस्त्र सुयोग्य कहा गया है, क्योंकि वह बड़ा लचीला होता है।

वायुपुरण वस्त्र :प्राचीनकाल में ऐसा वस्त्र बनता था जिसमें वायु भरी जा सकती थी। उस वस्त्र को बनाने की निम्न विधि अगस्त्य संहिता में है-

क्षीकद्रुमकदबाभ्रा भयाक्षत्वश्जलैस्त्रिभिः। त्रिफलोदैस्ततस्तद्वत्पाषयुषैस्ततः स्ततः।।

संयम्य शर्करासूक्तिचूर्ण मिश्रितवारिणां। सुरसं कुट्टनं कृत्वा वासांसि स्त्रवयेत्सुधीः।।

-अगस्त्य संहिता

 

अर्थात :रेशमी वस्त्र पर अंजीर, कटहल, आंब, अक्ष, कदम्ब, मीराबोलेन वृक्ष के तीन प्रकार ओर दालें इनके रस या सत्व के लेप किए जाते हैं। तत्पश्चात सागर तट पर मिलने वाले शंख आदि और शर्करा का घोल यानी द्रव सीरा बनाकर वस्त्र को भिगोया जाता है, फिर उसे सुखाया जाता है। फिर इसमें उदानवायु भरकर उड़ा जा सकता है।

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