105 साल की ‘परदादी’ परी बनकर उड़ीं, 100 मीटर रेस में नया रेकॉर्ड
यूं ही नहीं कहते कि उम्र तो सिर्फ एक संख्या है और सपने पूरा करने के लिए कोई उम्र नहीं होती। राष्ट्रीय ओपन मास्टर्स एथलेटिक्स चैंपियनशिप (एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया की ओर से आयोजित) में कुछ ऐसा ही देखने को मिला। 105 वर्षीय रामबाई ने उम्र का शतक पूरा करने के बावजूद अपने सपनों को जी रही हैं और उन्होंने 100 मीटर में नया रिकॉर्ड भी बनाया है।
वह कहती हैं, ‘यह एक अच्छा एहसास है और मैं फिर से दौड़ना चाहती हूं।’ 105 वसंत देखने के बावजूद जिंदगी को एंजॉय कर रहीं इस परदादी उड़न परी ने दो गोल्ड मेडल हासिल किए। 15 जून को 100 मीटर और रविवार को 200 मीटर मीटर का गोल्ड अपने नाम किया। उनका अगला लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में हिस्सा लेना है। वह पासपोर्ट के लिए आवेदन करने की योजना बना रही हैं। यह पूछे जाने पर कि वह बहुत कम उम्र में क्यों नहीं दौड़ीं तो हरियाणा की सेंचुरियन ने हंसते हुए कहा, ‘मैं दौड़ने के लिए तैयार थी लेकिन किसी ने मुझे मौका नहीं दिया।’
रामबाई ने तोड़ा मान कौर का रिकॉर्ड
इस उम्र में तमाम लोगों के लिए प्रेरणा बनीं रामबाई, जिनका जन्म 1 जनवरी, 1917 को हुआ था, वडोदरा में अकेली दौड़ीं, क्योंकि प्रतियोगिता में 85 से ऊपर का कोई प्रतियोगी नहीं था। उन्होंने सैकड़ों दर्शकों के जयकार के बीच 100 मीटर की दौड़ पूरी की। वह विश्व मास्टर्स में 100 मीटर की उम्र में स्वर्ण जीतने के बाद प्रसिद्ध हो गई। उन्होंने 45.40 सेकंड में रेस पूरी करते हुए नेशनल रिकॉर्ड कायम किया। इससे पहले यह रिकॉर्ड मान कौर के नाम था, जिन्होंने 74 सेकंड में रेस पूरी की थी।
At 105 years, super grandma sprints new 100m record. #Rambai ran alone in #Vadodara as there was no competitor above 85 competing at the National Open Masters Athletics Championship pic.twitter.com/iCIPTOkuFt
— TOI Bengaluru (@TOIBengaluru) June 21, 2022
रामबाई रेस पूरी करते ही स्टार बन गईं और अन्य प्रतियोगियों के साथ सेल्फी और तस्वीरें खिंचवाने में व्यस्त थीं। वडोदरा में प्रतिस्पर्धा और पदक जीतने वाली रामबाई की पोती शर्मिला सांगवान ने कहा, ‘मैं आरटी-पीसीआर परीक्षण के बाद वडोदरा पहुंचने से पहले 13 जून को उसे दिल्ली ले गई। हम अब घर लौट रहे हैं। मैं नानी को उनके गांव कदमा छोड़ दूंगी, जो चरखी दादरी जिले में दिल्ली से लगभग 150 किमी दूर है।
पिछले साल वाराणसी में डेब्यू
शर्मिला ने कहा कि उनका पूरा परिवार खेलों में है। उन्होंने बताया, ‘सेना में सेवारत हमारे परिवार के कुछ सदस्यों ने मास्टर्स एथलेटिक मीट में भाग लेने के अलावा राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग लिया है। मेरी दादी ने पहली बार पिछले नवंबर में प्रतिस्पर्धा की थी जब मैं उन्हें वाराणसी ले गई थी। फिर उन्होंने महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल में भाग लिया। अब तक उन्होंने एक दर्जन से अधिक पदक जीते हैं।’
जीतने के मंत्र के बारे में पूछे जाने पर रामबाई अपनी हंसी नहीं रोक पाईं। वह बोलीं, ‘मैं चूरमा, दही और दूध खाती हूं।’ उसने कहा, ‘वह शुद्ध शाकाहारी हैं। नानी प्रतिदिन लगभग 250 ग्राम घी और 500 ग्राम दही खाती हैं। वह दिन में दो बार 500 मिलीलीटर शुद्ध दूध पीती हैं। उन्हें बाजरा की रोटी (बाजरे से बनी फ्लैट रोटी) पसंद है और वह चावल ज्यादा नहीं खातीं। शर्मिला के मुताबिक, उनकी दादी की सफलता और ताकत का राज उनका खान-पान और गांव का वातावरण है। उन्होंने कहा, ‘मेरी नानी खेतों में बहुत काम करती हैं। एक सामान्य दिन में वह 3-4 किमी दौड़ती हैं। वह जो खाना खाती हैं, वह ज्यादातर गांव में उगाई जाती है।’
不知道说啥,开心快乐每一天吧!
Long living the peace