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राष्ट्रपति चुनाव: आखिरी वक्त में बदले समीकरण, राधाकृष्णन को करना पड़ा 5 साल इंतजार

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हाइलाइट्स

  • डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति दोनों पदों पर रहने वाले पहले नेता
  • दूसरे चुनाव में मिलना था डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन को मौका, आखिरी वक्त में टला फैसला
  • सादगी से सभी का दिल जीता, वेतन का अधिकांश हिस्सा राहत कोष में करा देते थे जमा
नई दिल्ली: देश के प्रथम उपराष्ट्रपति डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Sarvepalli Radhakrishnan) को दूसरी बार ही 1957 में राष्ट्रपति चुनाव (Presidential Polls) लड़ाने की तैयारी थी। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इसके लिए मन भी बना लिया था और इस बात की जानकारी सर्वपल्ली राधाकृष्णन को भी थी। राधाकृष्णन भी यह मानकर चल रहे थे कि वो राष्ट्रपति बन जाएंगे। हालांकि अचानक राजेंद्र प्रसाद के फिर से राष्ट्रपति चुनाव लड़ने का मन बनाने के बाद अजीब स्थिति पैदा हो गई। कांग्रेस पार्टी के भीतर भी अधिकांश लोग यह चाहते थे कि राजेंद्र प्रसाद को ही दोबारा से यह जिम्मेदारी मिले। पंडित नेहरू ने जब देखा कि पार्टी के अधिकांश नेता इस पक्ष में हैं कि राजेंद्र प्रसाद ही दोबारा राष्ट्रपति चुने जाएं इसके बाद उनको भी सहमत होना पड़ा। नेहरू को राधाकृष्णन का नाम पीछे करना पड़ा और इस फैसले से राधाकृष्णन नाराज भी हुए।

 


फैसले से खुश नहीं थे डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन

डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन को पता चल चुका था कि इस बार उनका नाम आगे नहीं है। इस फैसले से वो खुश नहीं थे। वहीं पंडित नेहरू ने जब देखा कि पार्टी का एक धड़ा राजेंद्र प्रसाद को ही दोबारा राष्ट्रपति देखना चाहता है। उन्होंने पार्टी के कई नेताओं से इस बारे में विचार किया उनकी ओर से भी यही कहा गया कि अधिकांश लोगों की यही राय है। पहले दो कार्यकाल 1952 और 1957 के बाद तीसरे कार्यकाल में राधाकृष्णन राष्ट्रपति बने। 13 मई 1962 को डॉक्टर राधाकृष्णन देश के दूसरे राष्ट्रपति बने। देश के पहले उप- राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति दोनों पदों पर रहने वाले पहले नेता बने थे।


राधाकृष्णन के सामने मैदान में 2 उम्मीदवार

राधाकृष्णन जब मैदान में उतरे तो किसी दल ने उनके खिलाफ उम्मीदवार नहीं खड़ा किया लेकिन दो निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे। राधाकृष्णन के सामने चौधरी हरिराम और दूसरे निर्दलीय प्रत्याशी थे यमुना प्रसाद त्रिसुलिया। चौधरी हरिराम तीसरी बार चुनाव लड़ रहे थे। राधाकृष्णन की एकतरफा जीत हुई। उनको 5,53,067 वोट मिले वहीं दोनों उम्मीदवारों मिलाकर केवल दस हजार वोट मिले।

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ऐसा करो तो मेरे लिए गौरव की बात होगी
डॉ राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर, 1888 को तमिलनाडु के तिरुत्तानी में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। डॉ राधाकृष्णन अपने शिक्षण करियर के दौरान छात्रों के बीच एक लोकप्रिय शिक्षक थे। 1962 में जब डॉ राधाकृष्णन ने भारत के दूसरे राष्ट्रपति का पद संभाला, तो उनके छात्रों ने 5 सितंबर उनसे अपना जन्मदिन मनाने की गुजारिश की। डॉ राधाकृष्णन ने इसकी बजाय समाज में शिक्षकों के योगदान को मान्यता देने के लिए 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा मेरा जन्मदिन मनाने के बजाय 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए तो यह मेरे लिए गौरव की बात होगी। तभी से उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।

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काम टालने की आदत नहीं

देश के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की एक दुर्लभ तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल है। इस तस्वीर में राधाकृष्णन के बेडरूम में दस्तावेज बिखरे हुए दिखाई दे रहे हैं। उनमें से किसी एक अहम कागजात को राधाकृष्णन काफी गहनता के साथ पढ़ते दिखाई दे रहे हैं। ये दुर्लभ तस्वीर इस बात से अवगत कराता है कि जिस समय दुनिया में इंटरनेट समेत अन्य हाई टेक सुविधा नहीं होती थी। उस दौर में भी भारतीय राजनीति के शीर्ष पर आसीन शख्सियत देश के बेहतर भविष्य के खातिर दिन रात काम में जुटे रहते थे।

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