अयोध्या जमीन खरीदने में धांधली, दोषियों को ऐसी सजा मिले जो नजीर बन जाए
अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद कुछ रसूखदार लोगों द्वारा बड़े पैमाने पर मंदिर परिसर के आसपास की जमीनें खरीदे जाने की खबरें परेशान करने वाली हैं। अच्छा है कि प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने अविलंब इस मामले में जांच का आदेश दे दिया है। राजस्व विभाग के स्पेशल सेक्रेटरी स्तर के अधिकारी द्वारा की जाने वाली इस जांच की रिपोर्ट एक सप्ताह में आने वाली है। स्वाभाविक ही, सबकी नजर अब इस बात पर टिकी है कि यह रिपोर्ट क्या कहती है।
वैसे एक अंग्रेजी अखबार में राममंदिर के पांच किलोमीटर के दायरे में जमीन खरीदे जाने की यह खबर छपते ही विपक्ष ने भी इस पर तीखी प्रतिक्रिया जताई। उत्तर प्रदेश में चुनाव करीब हैं, इसलिए इसे राजनीतिक मुद्दा बनाने की भी कोशिश होगी। अगर इस मुद्दे पर सियासत की बात रहने दें तो अयोध्या में रामजन्मभूमि मंदिर देश-विदेश के करोड़ों हिंदुओं के लिए आस्था से जुड़ा एक संवेदनशील मुद्दा रहा है। ऐसे में मंदिर के आसपास स्थित जमीन के मालिकों से येन-केन प्रकारेण जमीन का मालिकाना हासिल कर लेने की प्रवृत्ति के पीछे और कुछ नहीं, कमाई बढ़ाने की भावना है।
सबसे बड़ी बात यह कि इसमें सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी के विधायक, मेयर और महत्वपूर्ण प्रशासनिक अधिकारियों के परिवारजनों के नाम आ रहे हैं। यानी पहली नजर में मामला सत्ताधारी पार्टी और प्रशानिक अधिकारियों की मिलीभगत से आम लोगों को औने-पौने दाम पर अपनी जमीन बेचने के लिए मजबूर करने का लगता है, जिसका मकसद बाद में उस जमीन से मोटी कमाई करना होगा। ध्यान रहे, अयोध्या में राममंदिर के निर्माण के लिए देश और समाज का बहुत कुछ दांव पर लगा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से जब अयोध्या में मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हुआ, तो देश-विदेश में फैले करोड़ों हिंदू श्रद्धालुओं ने इसे अपनी आस्था की जीत माना था। उसके बाद बड़ी संख्या में लोगों ने मंदिर निर्माण के लिए चंदा भी दिया है।
इस बीच, सरकार से जुड़े लोगों के अनियमितता करके जमीन खरीदने की खबर सामने आने से उन श्रद्धालुओं की भावनाओं को भी ठेस पहुंची होगी। इस मामले में मुख्यमंत्री ने जांच का आदेश देने में जिस तरह की तत्परता दिखाई है, वह निश्चित रूप से तारीफ के काबिल है। लेकिन इससे भी ज्यादा जरूरी है यह सुनिश्चित करना कि जांच सिर्फ दिखावे की कार्रवाई साबित ना हो। इसका तय समय के भीतर पूरा होना तो आवश्यक है ही, विश्वसनीय और पारदर्शी बने रहना भी जरूरी है। और सबसे बड़ी बात, जांच में जो लोग भी दोषी पाए जाएं, उनके खिलाफ कानून के मुताबिक ऐसी ठोस कार्रवाई होनी चाहिए जो भविष्य में एक नजीर बने।