‘खतरनाक’ टेक्नॉलजी का इस्तेमाल कर रहा चीन, मंगल पर जाने में लगेंगे सिर्फ 39 दिन
हाइलाइट्स:
- अपने स्पेस स्टेशन पर खास टेक्नॉलजी इस्तेमाल रहा है चीन
- Ion Thrusters की मदद से ईंधन और समय की बचत
- मंगल पर जाने के लिए 6-8 महीनों की जगह लगेंगे 39 दिन
- अभी तक इस टेक्नॉलजी को खतरनाक माना जाता रहा है
- चीन ने निकाला तोड़, लगातार 11 महीनों तक किया इस्तेमाल
पेइचिंग
चीन के तियांगॉन्ग (Tiangong) स्पेस स्टेशन को ऐसी टेक्नॉलजी से बनाया जा रहा है जिससे मंगल पर जाने का समय बेहद कम किया जा सकता है। आयॉन थ्रस्टर्स (Ion Thruster) की मदद से मंगल पर जाने में ईंधन की खपत भी कम होगी। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट में बताया गया है कि स्पेस स्टेशन का पहला मॉड्यूल Tianhe इस टेक्नॉलजी का इस्तेमाल कर रहा है।
क्यों होते हैं बेहतर?
इसमें 4 आयॉन थ्रस्टर लगे हैं। ये प्रोपल्शन के लिए बिजली के इस्तेमाल से आयॉन्स को एक्सलरेट करते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह मॉड्यूल जल्द ही इतिहास में पहली बार इस टेक्नॉलजी से इंसानों को ले जाने वाला स्पेसक्राफ्ट बन सकता है। आयॉन ड्राइव्स केमिकल प्रोपल्शन से कई गुना ज्यादा बेहतर होते हैं।
चीन के ऑर्टिफिशियल सूरज ने बनाया वर्ल्ड रिकॉर्ड, 100 सेंकेंड तक पैदा किया 12 करोड़ डिग्री सेल्सियस का तापमानइस आधुनिक रिएक्टर को पहली बार पिछले साल 2020 में स्टार्ट किया गया था। तब इस रिएक्टर ने 100 सेकेंड के लिए 10 करोड़ डिग्री सेंटीग्रेड का तापमान पैदा किया था। लेकिन, इस बार चीन के इस न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर ने अपने ही रिकॉर्ड को तोड़ते हुए 12 करोड़ डिग्री सेंटीग्रेड का तापमान पैदा किया है। शेन्जेन के साउथर्न यूनिवर्सिची ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के फिजिक्स डिपॉर्टमेंट के डॉयरेक्टर ली मियाओ ने चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स को बताया कि इस प्रोजेक्ट का अगला लक्ष्य एक हफ्ते के लिए रिएक्टर को इसी तापमान पर चलाना हो सकता है। उन्होंने यह भी कहा इतनी ज्यादा गर्मी को कृत्रिम रूप से बनाना भी अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। अब इन वैज्ञानिकों का अंतिम लक्ष्य इस तापमान को लंबे समय तक स्थिर स्तर पर बनाए रखना होना चाहिए।
यह मशीन चीन की सबसे बड़ी और सबसे आधुनिक एटमिक फ्यूजन एक्सपेरिमेंटर रिसर्च डिवाइस गर्म प्लाज्मा को संलयन के स्तर तक पहुंचाने के लिए एक शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र का उपयोग करता है। इस डिवाइस को कभी भी खत्म न होने वाली स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करने के लिए सूरज और तारों के अंदर अपनेआप पैदा होने वाले परमाणु संलयन प्रक्रिया को दोहराने के लिए डिजाइन किया गया है। इसी कारण यह डिवाइस 12 करोड़ डिग्री सेल्सियस तक का तापमान पैदा करने में सक्षम हो पाई है। इस डिवाइस को चीन के अनहुई प्रांत में में लगाया गया है जिसका काम पिछले साल के आखिरी महीनों में पूरा हुआ था। इसके रिएक्टर को अत्याधिक गर्मी और शक्ति के कारण कृत्रिम सूर्य का नाम दिया गया है। इस रिएक्टर को चीन के हेफेई इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिकल साइंस और चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज ऑपरेट कर रहे हैं।न्यूक्लियर फ्यूजन से ही सूरज को ऊर्जा मिलती है। इसकी वजह से ऐसा प्लाज्मा पैदा होता है जिसमें हाइड्रोजन के आइसोटोप्स (ड्यूटीरियम और ट्राइटियम) आपस में फ्यूज होकर हीलियम और न्यूट्रॉन बनाते हैं। शुरुआत में रिएक्शन से गर्मी पैदा हो, इसके लिए ऊर्जा की खपत होती है लेकिन एक बार रिएक्शन शुरू हो जाता है तो फिर रिएक्शन की वजह से ऊर्जा पैदा भी होने लगती है। ITER पहला ऐसा रिएक्टर है जिसका उद्देश्य है कि न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्शन के शुरू होने में जितनी ऊर्जा इस्तेमाल हो, उससे ज्यादा ऊर्जा रिएक्शन की वजह से बाद में उत्पाद के तौर पर निकले।
चीन के सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र पीपुल्स डेली ने कहा कि न्यूक्लियर फ्यूजन एनर्जी का विकास न केवल चीन की रणनीतिक ऊर्जा जरूरतों को हल करने का एक तरीका है, बल्कि चीन की ऊर्जा और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के भविष्य में विकास को भी बढ़ाने में बड़ा महत्व रखता है। चीनी वैज्ञानिक 2006 से परमाणु संलयन रिएक्टर के छोटे संस्करण विकसित करने पर काम कर रहे हैं। वे वे अंतरराष्ट्रीय थर्मोन्यूक्लियर प्रायोगिक रिएक्टर (आईटीईआर) पर काम कर रहे वैज्ञानिकों के सहयोग से डिवाइस का उपयोग करने की योजना बना रहे हैं। चीन के अलावा फ्रांस में भी दुनिया की सबसे बड़ी परमाणु संलयन अनुसंधान परियोजना चल रही है, जिसे 2025 तक पूरा होने की उम्मीद है। इसे इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) के पूरा होने के बाद से दूसरी सबसे बड़ी अंतरराष्ट्रीय साइंस प्रॉजक्ट माना जा रहा है।
चाइनीज अकैडमी ऑफ साइंसेज के मुताबिक इंटरनैशनल स्पेस स्टेशन को एक साल तक कक्षा में रखने के लिए ये 4 टन रॉकेट फ्यूल लेते हैं। आयॉन थ्रस्टर इतने समय के लिए सिर्फ 400 किलो की जरूरत होगी। इसकी मदद से मंगल पर 6-8 महीनों में नहीं 39 दिन में पहुंचा जा सकेगा। चीन न सिर्फ स्पेस स्टेशन बल्कि सैटलाइट समूहों और परमाणु ऊर्जा से चलने वाले स्पेसक्राफ्ट्स के लिए भी इस टेक्नॉलजी का इस्तेमाल करना चाहती है।
Moon Gold Rush: चंद्रमा पर ऐसा क्या है जिसके लिए बेताब हुए अमेरिका-चीन, कोल्ड वॉर के बाद शुरू हुई नई स्पेस रेसचांद के वीरान और उजाड़ सतह के नीचे कई बहुमूल्य धातुएं मौजूद हैं। ऐसा माना जाता है कि सोने और प्लेटिनम का खजाना चंद्र सतह के ठीक नीचे दबी हुई हैं। इसके अलावा धरती पर मिलने वाले कई अन्य धातुएं जैसे टाइटेनियम, यूरेनियम, लोहा भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। दावा यह भी है कि चंद्रमा पर पृथ्वी की दुर्लभ कई धातुएं हैं जो अगली पीढ़ी के इलेक्ट्रॉनिक्स को शक्ति प्रदान करेंगी। यही कारण है कि सभी देश जल्द से जल्द इस वीरान, उबड़-खाबड़ और अमानवीय जलवायु वाले उपग्रह पर पहुंचना चाहते हैं। चंद्रमा पर नॉन-रेडियोएक्टिव हीलियम गैस भी एक महत्वपूर्ण मात्रा में उपलब्ध है। यह गैस एक दिन धरती पर परमाणु फ्यूजन (nuclear fusion) रिएक्टरों को शक्ति प्रदान कर सकती है। विशेषज्ञों का तो दावा यहां तक है कि चंद्रमा पर पानी भी मौजूद है। एक दिन ऐसा आएगा जब इस उपग्रह की पानी के लिए सभी देशों के बीच होड़ मचेगी।
विशेषज्ञों के मुताबिक, विश्वभर की महाशक्तियों की योजना चांद पर बस्तियां बसाने की है। इसी को देखते हुए चीन ने लंबी अवधि की योजना पर काम करते हुए अपना चंद्रमा उत्खनन कार्यक्रम शुरू किया है। उसकी कोशिश वर्ष 2036 तक चंद्रमा पर एक स्थायी ठिकाना बनाने की है। चीन चंद्रमा के टाइटेनियम, यूरेनियम, लोहे और पानी का इस्तेमाल रॉकेट निर्माण के लिए करना चाहता है। अंतरिक्ष में यह रॉकेट निर्माण सुविधा वर्ष 2050 तक अंतरिक्ष में लंबी दूरी तक उत्खनन करने की उसकी योजना के लिए बेहद जरूरी है। चीन क्षुद्र ग्रहों का भी उत्खनन करना चाहता है। साथ ही उसकी योजना भू समकालिक कक्षा में सोलर पॉवर स्टेशन बनाने की है। चीन के अंतरिक्ष कार्यक्रम के प्रमुख झांग केजिन ने घोषणा की है कि चीन अगले 10 साल में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अपना शोध केंद्र स्थापित करेगा।
चीन की इन पुख्ता तैयारियों को देखते हुए ही 2019 में डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में तत्कालीन अमेरिकी उपराष्ट्रपति माइक पेंस ने भी कहा था, ‘हम इन दिनों एक स्पेस रेस में जी रहे हैं जैसाकि वर्ष 1960 के दशक में हुआ था और दांव पर उस समय से ज्यादा लगा है। चीन ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण चंद्रमा के सुदूरवर्ती इलाके में अपना अंतरिक्ष यान उतारा है और इस पर कब्जा करने की योजना का खुलासा किया है।’ चंद्रमा के खनिजों का तेजी के साथ खनन अमेरिका के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण हो गया है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा एक ऐसे रोबॉट पर काम कर रही है जो प्राकृतिक संसाधनों का पता लगाने के लिए चंद्रमा की मिट्टी को निकालकर उसकी जांच कर सकता है। नासा भी वर्ष 2028 तक चंद्रमा पर एक अड्डा बनाना चाहती है। नासा के ऐडमिनिस्ट्रेटर जिम ब्राइडेनस्टाइन ने पिछले दिनों कहा था कि हम चांद पर इसलिए जाना चाहते हैं क्योंकि हम मानव के साथ मंगल ग्रह पर जाना चाहते हैं।
नासा के इस काम में ऐमजॉन कंपनी के मालिक जेफ बेजोस मदद कर रहे हैं। उनकी एक कंपनी ब्लू ओरिजिन एक नए रॉकेट पर काम कर रही है। बेजोस की योजना पृथ्वी पर स्थित सभी विशालकाय उद्योगों को अंतरिक्ष में ले जाने की है। चीन और बेजोस दोनों की योजना अंतरिक्ष में मानव बस्तियां बसाने और औद्योगीकरण की है। चीन की सोच है कि धरती पर स्थित परंपरागत ऊर्जा स्रोतों पर अगर उसकी अर्थव्यवस्था निर्भर रहेगी तो यह लंबे समय के लिए ठीक नहीं होगा। इसीलिए वह अंतरिक्ष के संसाधनों के इस्तेमाल पर काम कर रहा है। बेजोस भी मानते हैं कि मानव के रहने के लिए पृथ्वी के संसाधन सीमित हैं, इसलिए अंतरिक्ष में रहने की संभावना पर काम करना होगा। बेजोस ने अपने एक भाषण में कहा था कि चंद्रमा के पानी का इस्तेमाल ईंधन के रूप में किया जा सकता है।
पुरानी है टेक्नॉलजी
यह टेक्नॉलजी दशकों पुराने है लेकिन अभी तक पर्याप्त मात्रा में थ्रस्ट की वजह से ऐस्ट्रोनॉट्स के जीवन और सैटलाइट के ऊपर खतरा बन जाता था। अब CAS ने हाल ही में 11 महीने लगातार इसका इस्तेमाल किया है। मैग्नेटिक फील्ड की मदद से यह सुनिश्चित किया जाता है कि पार्टिकल्स इंजिन को कोई नुकसान न पहुंचाएं। वहीं, एक खास सेरेमिक मटीरियल रेडिएशन से बचाता है।
Wuhan Lab Leak: चीन में खाली पड़ी खदान से निकला Coronavirus, लैब से हुआ लीक? अमेरिकी खुफिया एजेंसी की रिपोर्ट से छिड़ी बहसअप्रैल 2012 में चीन के युन्नान प्रांत में तांबे की एक खदान में तीन मजदूरों को सफाई के लिए भेजा गया। इस खदान का इस्तेमाल नहीं होता था और यहां चमगादड़ों ने अपना घर बसा रखा था। इस अंधेरी खदान में हवा तक नहीं थी और घंटों ये मजदूर यहां सफाई करते रहे। दो हफ्ते बाद तीनों को निमोनिया जैसी बीमारी हो गई। इसके बाद तीन और मजदूरों को भेजा गया लेकिन उन्हें भी तेज बुखार, खांसी और सांस में दिक्कत होने लगी। सभी को कनमिंग मेडिकल स्कूल इलाज के लिए भेजा गया जहां उन्हें वेंटिलेटर पर रखना पड़ा। कुछ ही महीनों में 3 की मौत हो गई।
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