UP Politics: केशव मौर्य और विजय बहुगुणा के बयानों से गर्म हुई यूपी की सियासत
नई दिल्ली
यूपी की पॉलिटिक्स में जब भी यह लगने लगता है कि बीजेपी के सीएम चेहरे का मुद्दा खत्म हो गया है, डेप्युटी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का कोई ऐसा बयान आ जाता है जो इस मुद्दे को जिंदा कर देता है। उधर उत्तराखंड में बीजेपी ने कांग्रेस से आए नेताओं को साधने के लिए विजय बहुगुणा को आगे किया, जो खुद कांग्रेस के सीएम रह चुके हैं। केशव मौर्य और विजय बहुगुणा के बीच समानता यह है कि दोनों के बयान इस वक्त यूपी और उत्तराखंड की सियासत को गरम किए हुए हैं।
चाय बेची, अखबार बांटा केशव ने
केशव प्रसाद मौर्य बचपन में अपने पिता की दुकान पर चाय बेचते थे। घर का खर्च चाय की दुकान से पूरा नहीं हो पाता था। सो, उन्होंने अखबार बांटने और सब्जी बेचने तक का काम किया। कौशांबी जिले के सिराथू गांव के गरीब परिवार में जनमे केशव के जीवन में बदलाव राम मंदिर आंदोलन से आया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा लगाने वाले केशव 1989 में विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के संपर्क में आए। राममंदिर आंदोलन में ही उनकी मुलाकात वीएचपी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल से हुई। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वीएचपी ने शुरुआत में उन्हें राम मंदिर आंदोलन की राम ज्योति यात्रा, शिला पूजन कार्यक्रम की जिम्मेदारी दी। 1992 में जब उन्हें वीएचपी का संगठन मंत्री बनाया गया तो वह अयोध्या में कारसेवा के लिए पहुंच गए। मंदिर आंदोलन में सक्रिय रहने के बाद अशोक सिंघल के कहने पर वह राजनीति में आए।
2004 में पार्टी ने उन्हें इलाहाबाद पश्चिम से चुनाव लड़ाया। यहां से दो बार चुनाव लड़ने पर भी वह जीत नहीं सके। इसके बाद 2012 में पार्टी ने उन्हें सिराथू से चुनाव लड़वाया। वहां से केशव पहली बार विधायक चुने गए। 2014 में जब लोकसभा चुनाव हुए तो बीजेपी ने एक बार फिर से उन्हें फूलपुर से लोकसभा का चुनाव लड़वाया। केशव फूलपुर से जीतकर संसद पहुंचे। तब तक केशव मौर्य पिछड़ों के बड़े नेता के तौर पर उभर चुके थे। बीजेपी के रणनीतिकार माने जाने वाले अमित शाह ने तब तक इस बात को समझ लिया था कि अगर केशव को पिछड़ों के चेहरे के तौर पर उतारा जाए तो यूपी में बीजेपी का पूरा स्वरूप ही बदल जाएगा। शाह के कहने पर उन्हें अप्रैल, 2016 में यूपी बीजेपी का अध्यक्ष बनाया गया। इसके बाद उन्होंने बतौर प्रदेश अध्यक्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए वह करिश्मा कर दिखाया, जिसका पार्टी को अरसे से इंतजार था। बीजेपी ने सहयोगी दलों के साथ 325 सीटें जीतीं। सरकार बनने पर केशव प्रसाद मौर्य को डेप्युटी सीएम बनाने के साथ लोक निर्माण विभाग की जिम्मेदारी दी गई। अब तक उनका कद इतना बढ़ चुका है कि पार्टी उन्हें बिहार, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल समेत कई राज्यों के चुनाव में बड़ी जिम्मेदारी दे चुकी है।
पिछले पांच साल से खाली थे विजय
28 फरवरी, 1947 को जनमे विजय बहुगुणा भारतीय राजनीति में चाणक्य का दर्जा हासिल करने वाले स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा के ज्येष्ठ पुत्र हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट और मुंबई हाईकोर्ट के जज रह चुके विजय बहुगुणा जजशिप से इस्तीफा देने के बाद सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस भी कर चुके हैं। 2016 में कांग्रेस से बगावत कर हरीश रावत सरकार को गिरा देने वाले विजय बहुगुणा को बीजेपी ने पिछले 5 साल से खाली बैठा रखा है। 2012 के चुनाव में उत्तराखंड में जब कांग्रेस को बहुमत मिला था, तो मुख्यमंत्री पद के लिए तत्कालीन केंद्रीय मंत्री हरीश रावत, हरक सिंह रावत और इंदिरा हृदयेश को रेस में शामिल माना जा रहा था। लेकिन दस जनपथ ने इन सबको दरकिनार कर विजय बहुगुणा को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री घोषित कर दिया। विजय बहुगुणा की बहन रीता बहुगुणा भी तब कांग्रेस में हुआ करती थीं, दस जनपथ तक उनकी पहुंच विजय बहुगुणा के काम आई। विजय बहुगुणा को राजनीति में खड़ा करने के लिए वर्ष 2002 में बनी कांग्रेस सरकार में एनडी तिवारी ने उन्हें राज्य योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाया।
विय बहुगुणा सक्रिय राजनीति में वर्ष 1997 में आए थे। टिहरी संसदीय सीट पर वह बीजेपी नेता और टिहरी महाराज मानवेंद्र शाह से लगातार तीन बार पराजित हुए। शाह के निधन के बाद वर्ष 2007 में टिहरी सीट पर हुए उपचुनाव में वह पहली बार विजयी हुए। इसके बाद वर्ष 2009 के लोकसभा आम चुनाव में बहुगुणा इसी सीट से दोबारा निर्वाचित हुए। उनके पिता के साथ अपने मधुर सबंधों के तहत तिवारी ने विजय बहुगुणा को राजनीति में आगे बढ़ाया। 2016 में वह हरक सिंह समेत नौ विधायकों के साथ कांग्रेस की सरकार गिराने के इरादे से बीजेपी में शामिल हो गए, लेकिन उन्हें बीजेपी से जो उम्मीद थी, वह अभी तक पूरी नहीं हुई। बीजेपी को लेकर उनका नरम रुख इसलिए बना है क्योंकि वह अपने बेटों को राजनीति में स्थापित करना चाहते हैं। छोटे बेटे सौरभ बहुगुणा को सितारगंज से भारतीय जनता पार्टी का टिकट दिलाकर वह पिछली बार विधायक बनवा चुके हैं। बड़े बेटे साकेत बहुगुणा को भी बीजेपी से टिहरी सीट से सांसद का चुनाव लड़वाने की सोचते हैं। खुद अब राज्यपाल बनने की इच्छा रखते हैं। उन्हें यह अपने को साबित करने का मौका दिख रहा है।