कौन है मतुआ समुदाय, जिस पर है BJP-TMC दोनों की नजर, कैसे और कितना है बंगाल में दबदबा?
पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में मतुआ समुदाय पर सभी दलों की नजर है। उत्तरी बंगाल में लगभग सत्तर विधानसभा सीटों पर इस समुदाय का असर है। यही वजह है कि सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस व उसे चुनौती दे रही भाजपा दोनों ही इस समुदाय को साधने में जुटी हुई हैं। इस समुदाय के लिए इस समय नागरिकता बड़ा मुद्दा है। लोकसभा चुनावों में भाजपा की सीएए के वादों के चलते उसे इस समुदाय का समर्थन भी हासिल हुआ था। ममता बनर्जी भी इस समुदाय के करीब रही हैं और वह जमीन पर अधिकार सुनिश्चित कर रही हैं।
देश के विभाजन के बाद से मतुआ (मातृशूद्र) समुदाय के एक बड़े हिस्से को नागरिकता की समस्या से जूझना पड़ रहा है। उनको वोट का अधिकार तो मिल गया, लेकिन नागरकिता का मुद्दा बाकी है। देश के विभाजन के बाद इस समुदाय के कई लोग भारत आ गए थे। बाद में भी पूर्वी पाकिस्तान से लोग आते रहे। इस समुदाय का प्रभाव उत्तर बंगाल में सबसे ज्यादा है। लगभग तीन करोड़ लोग इस समुदाय से जुड़े हैं या उसके प्रभाव में आते हैं। ऐसे में विभिन्न राजनीतिक दलों के लिए यह एक वोट बैंक रहा है।
वामपंथी, तृणमूल व भाजपा को मिल चुका है समर्थन :
पूर्व में वामपंथी दलों को इसका समर्थन मिलता रहा और बाद में ममता बनर्जी के करीब रहा। भाजपा ने 2019 के लोकसभा के पहले से इस समुदाय को साधना शुरू किया। बीते लोकसभा चुनाव के पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस समुदाय के प्रमुख ठाकुर परिवार की प्रमुख वीणापाणि देवी (बोरो मां) का आशीर्वाद लेकर अपना चुनाव अभियान शुरू किया था। इस परिवार का मतुआ समुदाय पर काफी प्रभाव है। बाद में भाजपा ने इसी परिवार के शांतनु ठाकुर को लोकसभा का टिकट दिया और वह जीते। इसके पहले तृणमूल कांग्रेस से इस परिवार से लोकसभा सदस्य रहा और राज्य में माकपा के कार्यकाल के दौरान विधायक भी इसी परिवार से रहे हैं। 1977 में इस समुदाय ने माकपा का समर्थन किया था, जिसकी लंबे समय तक सरकार रही।
सीएए के जरिए भाजपा ने बनाई नजदीकी :
भाजपा ने सीएए का मुद्दा लाकर इस समुदाय को अपने करीब किया है। लोकसभा चुनावों में भाजपा ने इसका वादा किया और बाद में इस पर कानून बनाया। अब इस समुदाय के लोगों को नागरिकता का भरोसा बना है। भाजपा नेता विधानसभा चुनाव के दौरान भी इस समुदाय के साथ खुद को जोड़े हुए हैं और वह इनके साथ उनके घर जाकर भोजन कर करीब आ रहे हैं। दूसरी तरफ ममता बनर्जी भी बोरो मां के करीब रही है। हालांकि अब बोरो मां नहीं है, ऐसे में उनका परिवार भी दो हिस्सों में बंट सकता है।
एनआरसी का डर दिखा रही है तृणमूल :
ममता बनर्जी एनआरसी का मुद्दा उठाकर कह रही है कि अगर वह लागू हुआ तो उन लोगों को बांग्लादेश वापिस जाना होगा। हालांकि भाजपा कह रही है कि सीएए बनाकर वह उनको यहां की नागरिकता देगी। चूंकि इस समुदाय में 99 फीसदी से ज्यादा लोग हिंदू समुदाय से आते हैं इसलिए भाजपा को समर्थन मिलने की काफी उम्मीद है। ममता बनर्जी भी भाजपा के नागरिकता के मुद्दे की काट के लिए मतुआ लोगों को जमीन पर अधिकार देने का अभियान चला रही है।
क्या है मतुआ समुदाय
मतुआ समुदाय के लोग पूर्वी पाकिस्तान से आते हैं। मतुआ संप्रदाय की शुरुआत 1860 में अविभाजित बंगाल में हुई थी। मतुआ महासंघ की मूल भावना है चतुर्वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) की व्यवस्था को खत्म करना। हरिचंद ठाकुर के वंशजों ने मतुआ संप्रदाय की स्थापना की थी। नॉर्थ 24 परगना जिले के ठाकुर परिवार का राजनीति से लंबा संबंध रहा है। हरिचंद के प्रपौत्र प्रमथ रंजन ठाकुर 1962 में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में पश्चिम बंगाल विधान सभा के सदस्य बने थे।
कितना है राजनैतिक दबदबा
– 1971 में नामशूद्र समाज के लोगों की संख्या राज्य की कुल आबादी की 11 फीसदी थी। 2011 में यह बढ़कर 17 फीसदी तक हो गई
– 1.5 करोड़ की आबादी नामशूद्र समाज की है। नामशूद्र के अलावा दूसरे दलित वर्ग भी मतुआ संप्रदाय से जुड़े हैं
– 03 करोड़ के करीब वोटबैंक है मतुआ संप्रदाय के पास एक अनुमान के मुताबिक
– 50 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर इस समुदाय का सीधा असर
ममता मेहरबान
10 करोड़ रुपये के एक विकास बोर्ड की घोषणा की है ममता ने मतुआ समुदाय के लिए
5-5 करोड़ के अलग विकास बोर्ड भी बनाए बौरी और बागड़ी दलित जातियों के लिए
बजट के जरिये लुभाया
– ममता सरकार ने 2020-21 के बजट में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के वृद्धों को पेंशन के लिए 3,000 करोड़ रुपये की राशि दी है
– इससे अनुसूचित जाति के करीब 20 लाख और जनजाति के 4 लाख लोगों को 1,000 रुपये मासिक पेंशन मिलेगी
– अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए रोजगार पैदा करने, विकास का ढांचा खड़ा करने के लिए 150 करोड़ के अतिरिक्त पैकेज की घोषणा की
भाजपा भी पीछे नहीं
-मतुआ समुदाय के लोगों को सीएए के तहत नागरिकता देने का ऐलान
– लोकगायकों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए भत्ता देने का वादा
28 % अनुसूचित जाति/जनजाति के लोग है पश्चिम बंगाल में
30 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है राज्य में अनुमानित
कौन-कौन सी जनजातियां
पश्चिम बंगाल के विभिन्न आदिवासी समूहों में अधिकांश महत्वपूर्ण जनजातियां भूटिया जनजाति, गारो जनजाति, लोहारा जनजाति, महली जनजाति, मुरू जनजाति, मुंडा जनजाति, ओरोन जनजाति, पहाड़िया जनजाति, कोरा जनजाति आदि हैं। इनकी जनसंख्या राज्य की 10%है। पश्चिम बंगाल में बाल्स, भुइया, संथाल, उरांव, पहाड़िया, मुनस, लेफकास, भूटिया, चेरो, खारिया, गारो, माघ, महली, मुरू, मुंडा, लोहारा और माल पहाड़िया लोकप्रिय जनजातियों में से एक हैं।
ये दो मुद्दे भी हावी
बाहरी बनाम बंगाली : पश्चिम बंगाल चुनाव में ‘बाहरी बनाम बंगाली’ का मुद्दा भी प्रमुख रूप से सामने आया है। इसे बंगाली अस्मिता से जोड़कर देखा जा रहा है
राजनीतिक हिंसा : इस बार चुनावी हिंसा भी एक बड़ा फैक्टर है। भाजपा और टीएमसी दोनों एक दूसरे पर हिंसा की राजनीति का आरोप लगा रही हैं
कुल सीट : 294 सीटें
बहुमत के लिए : 148
कितने मतदाता : 7,32,94,980
पुरुष : 3,73,66,306
महिला : 3,59,27,084
आठ चरणों में कब-कब मतदान
- चरण- मतदान- कितनी सीट
- पहला चरण- 27 मार्च- 30
- दूसरा चरण – एक अप्रैल-30
- तीसरा चरण – 6 अप्रैल-31
- चौथा चरण- 10 अप्रैल-44
- पांचवां चरण – 17 अप्रैल-45
- छठा चरण- 22 अप्रैल-43
- सातवां चरण – 26 अप्रैल-36
- आठवां चरण- 29 अप्रैल -35