आईपीएल में लगातार बढ़ रही थी कीमत पर ईशान किशन को थी किस बात की चिंता
हाइलाइट्स
- ईशान किशन ने कहा कि उन्हें यकीन था मुंबई इंडियंस उनके लिए बोली लगाएगी
- किशन को चिंता इस बात की थी कीमत बहुत बढ़ गई थी और MI को टीम बनानी थी
- किशन ने ऋषभ के साथ अपने रिश्ते को लेकर भी चर्चा की, उन्होंने कहा हम अच्छे दोस्त
मुंबई:ईशान किशन (Ishan Kishan) खुद को मां का लाडला कहते हैं। और पिता उन्हें क्रिकेट की तकनीक समझाते हैं। ईशान के लिए इंडियन प्रीमियर लीग (Indian Premier League) की महा-नीलामी (IPL Auction) में खूब बोली लगी। फ्रैंचाइजी में उन्हें अपनी टीम में शामिल करने की जबर्दस्त होड़ देखी गई। लेकिन आखिर ईशान वहीं पहुंचे, जहां से उनका संबंध है- मुंबई इंडियंस (Mumbai Indians)। पांच बार की चैंपियन टीम ने 15.25 करोड़ रुपये की रकम में ईशान (Ishan Kishan Price) को अपने साथ जोड़ा। मुंबई इंडियंस फ्रैंचाईजी, टीम के साथ उनके संबंध, विराट की सीख और ऋषभ पंत के साथ उनके रिश्ते… इन सब मुद्दों पर उन्होंने खुलकर बात की। हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ हुई इस लंबी चर्चा में ईशान ने परिवार के साथ अपने संबंधों पर भी चर्चा की…
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मुंबई इंडियंस में आपकी घर वापसी शानदार रही है…
फ्रैंचाइजी हमेशा से काफी मददगार रही है। उन्होंने मेरा साथ दिया है और मुझे संवारने में मदद की है। मैं कभी इसे लेकर शिकायत नहीं कर सकता। इसका असर क्रिकेट पर नजर आता है। जिस तरह से उन्होंने मुझ पर यकीन दिखाया है। और मेरे भविष्य में निवेश किया है तो मुझे सिर्फ पहले से बनी हुई प्रक्रिया का पालन ही करना है।
आईपीएल ऑक्शन के दिन मुंबई इंडियंस में वापसी को लेकर आप कितने आश्वस्त थे?
मुझे पता था कि मुंबई इंडियंस मेरे लिए बोली लगाएगी। यह बहुत चिंता की बात नहीं थी। असली चिंता थी बढ़ती हुई कीमत, क्योंकि अपनी टीम तैयार करने के लिए मुंबई इंडियंस को पैसे बचाने की भी जरूरत थी। यह सिर्फ मेरी बात नहीं थी। मुझे स्वीकार करना होगा कि एक मिनट के लिए मेरी धड़कनें रुक गई थीं। मैं इसी वजह से मुंबई इंडियंस में वापसी करना चाहता था।
वे मुझे जानते हैं। वे मेरा खेल समझते हैं और मैं अपनी फ्रैंचाइजी को समझता हूं। मैं जानता हूं कि वह कैसे काम करती है। चूंकि मैं इस परिवार का हिस्सा हूं तो मैं कहीं और नहीं जाना चाहता। मैं यहां चार साल से हूं और रिश्ता शानदार है। हमने एक साथ दो ट्रॉफी जीती हैं। एक-दूसरे के साथ खड़े होकर। वे मेरा क्रिकेट समझते हैं और मैं जानता हूं कि वे मेरा ख्याल रखेंगे। तो, मैं कहीं और नहीं जाना चाहता।
अब आपकी क्या उम्मीदें हैं?
शुरुआत में मैं सोचता था, कुछ न कुछ तो अच्छा ही होगा यार, बस खेलते रहो। रन बनाते रहो। लेकिन बाद में मेरा नजरिया बदल गया। जब मैंने रोहित भाई, विराट भाई को देखा, जो पैमाना वह अपने लिए तय करते हैं, वह कमाल है। मैं उस दिशा में बढ़ना चाहता हूं।
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मैं उन जैसा समर्पित बनना चाहता हूं और उनका अनुकरण करना चाहता हूं। पहले मैं सोचता था कि चलो क्रिकेट चल रहा है, सब कुछ ठीक है। मुझे यह समझने में कुछ वक्त लगा कि इस पूरे ‘चलते रहने’ के पीछे आखिर पूरी बात क्या है।
मैंने धीरे-धीरे चीजों को समझना शुरू किया। जब मेरी विराट भाई से बात हुई तो उन्होंने कहा, ‘दस में से सात चीजें तुझे सेकरिफाइज करनी होंगी।’ ये छोटी-छोटी बातें काफी काम की हैं।
हमें विकेटकीपर ईशान किशन के बारे में बताइए
बेशक, मैं बतौर विकेटकीपर बल्लेबाज हर मैच खेलना चाहूंगा। लेकिन हमारे पास ऋषभ पंत हैं, जिन्होंने टीम के लिए बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है। तो, मुझे जो भी मौके मिलें, उनका पूरा फायदा उठाना है, यह मेरे लिए ठीक है। प्रतिस्पर्धा हमेशा अच्छी चीज होती है।
क्या ऋषभ पंत आपके दोस्त हैं?
बेशक, वह काफी अच्छे दोस्त हैं। जब कभी भी हम साथ होते हैं तो एक-दूसरे के साथ काफी वक्त बिताते हैं। जब भी हमें वक्त मिलता है, तो साथ में फिल्में देखते हैं। हम साथ में क्रिकेट के बारे में बात करते हैं, खेल के बारे में बात करते हैं। यह बात करते हैं कि हम क्या अलग कर सकते हैं। मैं उनके साथ अपने दिल की बात करता हूं, वह भी ऐसा करते हैं।
कभी मेरे दिमाग में यह नहीं आया कि मैंने उनकी जगह लेनी है और मैं आपको यकीन दिला सकता हूं कि उन्होंने भी कभी ऐसा नहीं सोचा होगा। और सबसे जरूरी बात यह है कि जब हम अपने क्रिकेट रूटीन के बीच होते हैं तो हम एक-दूसरे को कभी प्रतिस्पर्धी के रूप में देखते ही नहीं हैं। जब एक प्रतिभाशाली खिलाड़ी के साथ आपका अच्छा मुकाबला चल रहा हो, तो इसमें मजा भी आता है। आप कई अहम चीजें अपने आप समझ जाते हैं: अच्छा क्रिकेट खेलो और बाकी चीजें खुद-ब-खुद अपना ख्याल रखेंगी।
परिवार, मां, पापा, मेरा भाई। चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों, परिवार के साथ बात करने से हमेशा फायदा होता है। मैं मां का लाडला (हंसते हुए) हूं। मैं सबसे पहले मां से बात करता हूं क्योंकि मैं जानता हूं कि जैसे ही मैं अपने पिता से बात करूंगा वहीं फोन पर ही कोचिंग शुरू हो जाएगी। कोचिंग तो हर पिता देता है ना। हर पिता का यही कहना होता है, ‘ये मेरे वाला तकनीक अपनाओ और देखो कैसे सौ बनेगा।’ वह और मेरे भाई हमेशा मुझे समझाना चाहते हैं।