कृष्णदेवराय: वह हिंदू सम्राट जिन्हें बाबर मानता था सबसे ताकतवर राजा, पदचिन्हों पर चला अकबर
- विजयनगर पर राज करने वाले तुलुव राजवंश के तीसरे राजा थे कृष्णदेवराय
- कृष्णदेवराय की गिनती भारतीय इतिहास के सबसे महान सम्राटों में होती है
- मुगल सल्तनत का संस्थापक बाबर था कृष्णदेवराय की ताकत का कायल
- कृष्णदेवराय के दरबार में थे अष्टदिग्गज, उन्हीं के जैसे अकबर ने रखे नवरत्न
तुलुव राजवंश में जन्मे कृष्णदेव राय का साम्राज्य आज के कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और उत्तरी तमिलनाडु तक फैला था। उनके राज में विजयनगर ने भारतीय संस्कृति को सहेजकर रखना सिखाया। कृष्णदेवराय ने हजारों मंदिर बनाए, बहुतों का जीर्णोद्धार कराया। कृष्णदेवराय के राज में विजयनगर एक आधुनिक शहर की शक्ल ले रहा था। उनके समय में जो नहरें और सिंचाई की व्यवस्था बनीं, उनमें से कई तो आज भी काम आती हैं। भारतीय संस्कृति में कृष्णदेवराय का योगदान अप्रतिम है। वह खुद संस्कृत, तमिल, कन्नड़ और तेलुगु भाषाएं जानते थे। हालांकि राजकाज की भाषा कन्नड़ हुआ करती थी। इसके बावजूद, कृष्णदेवराय ने कई भाषाओं के कवियों को संरक्षण दिया। उनके काल को तेलुगु साहित्य का स्वर्णकाल कहा जाता है। कृष्णदेवराय ने अमुक्तमल्यादा नाम से एक तेलुगु महाकाव्य लिखा है।
इतिहासकारों के बीच आम राय है कि कृष्णदेवराय सैन्य प्रशासन और राजकाज में निपुण थे। वह बेहद सख्त प्रशासक थे और अपने मंत्रियों पर पूरा नियंत्रण रखते थे। कृष्णदेवराय का मत था कि राजा को हमेशा धर्म के अनुसार आचरण करना चाहिए। कृष्णदेवराय के शासन करते समय कई विदेशी यात्री भी विजयनगर आए। खेती को बढ़ावा देने के लिए कृष्णदेवराय ने राज्य में बांध और नहरों का जाल सा बिछा दिया। उस वक्त गोवा में शासन कर रहे पुर्तगालियों से विजयनगर का खूब व्यापार होता था। रोज सुबह उठकर कसरत करना सम्राट कृष्णदेवराय का शौक था। इसके बाद वह पहलवानों संग कुश्ती भी लड़ते।
सम्राट कृष्णदेवराय ने अपने शासनकाल में कई शत्रुओं को हराया। सत्ता संभालते ही कृष्णदेवराय ने दक्कन के सुल्तानों की लूटपाट पर रोक लगाई। पांच छोटे-छोटे राज्यों में बंटे बहमनी सुल्तानों से लगातार संघर्ष चलता ही रहता था। ओडिशा के गजपतियों और समुद्री व्यापार पर नियंत्रण रखने वाले पुर्तगालियों से भी कृष्णदेवराय ने डटकर मुकाबला किया। कृष्णदेवराय के सैन्य कौशल से जुड़ी एक कहानी खूब सुनी-सुनाई जाती है। ओडिशा के राजा की बेटी से विवाह के बाद उन्होंने चोलमंडल साम्राज्य पर आक्रमण का फैसला किया। जब कृष्णदेवराय केटावरम शहर पहुंचे तो पाया कि नदी उफना आई है और उसे पार करना मुश्किल है।सम्राट ने सैनिकों को आदेश दिया कि नदी के बहाव को कम करने के लिए कई जगह कटाव करें। कुछ ही देर में रास्ता साफ हो गया। केटावरम के पास एक लाख की पैदल सेना और 3,000 घुड़सवार थे, इसके बावजूद कृष्णदेवराय ने विजय पताका लहराई। सम्राट कृष्णदेवराय की वीरता के चर्चे मुगल सम्राट बाबर तक पहुंच रहे थे। उन दिनों बाबर उत्तर भारत पर नजरें गड़ाए बैठा था। उसकी राय में कृष्णदेवराय पूरे उपमहाद्वीप के सबसे शक्तिशाली राजा थे जिनका साम्राज्य सबसे बड़ा था।