National

India-China News: चीनी सैनिकों को ‘जोरावर’ देगा जोर का झटका, ऐसा जनरल जिसका शौर्य सुन हिल जाएंगे

Spread the love

हाइलाइट्स

  • भारतीय सेना में जोरावर टैंक को शामिल करने की तैयारी
  • जनरल जोरावर सिंह के नाम पर रखे गए इस टैंक से कांपते हैं दुश्मन
  • जोरावर सिंह ऊंचाई की लड़ाई के महारथी थी, उनके नाम सुन विपक्षी सेनाएं भाग जाती थीं
नई दिल्ली: तवांग सीमा पर चीनी सैनिकों के जारी तनाव के बीच भारतीय सेना ने अब ड्रैगन को जोर का झटका देने की तैयारी कर ली है। भारतीय सेना में ‘जोरावर’ टैंक को शामिल करने की तैयारी चल रही है। इस टैंक का नाम ‘भारत के नेपोलियन’ कहे जाने वाले जनरल जोरावर सिंह (General Zorawar Singh) के नाम पर पड़ा है। जोरावर ने तिब्बत में कई बड़ी लड़ाई लड़ी और उसमें जीत हासिल की थी। इस जनरल के नाम का खौफ दुश्मन की सेना में होता था। ऊंचाई वाली लड़ाईयों के ये माहिर थे।


‘लद्दाख का विजेता’ जोरावर

जोरावर को ‘लद्दाख का विजेता’ के नाम से भी जाना जाता है। जोरावर (1786-1841) का ये खौफ था कि उनके नाम से ही दुश्मन सेना भाग जाती थी। कहा जाता है कि जोरावर को दुश्मन की सेना ने जनरल की उपाधि दी थी। दुनिया में कही ऐसा उदाहरण नहीं मिलता, जहां दुश्मन की सेना ने किसी दुश्मन सैनिक को जनरल की उपाधि दी हो। जनरल जोरावर सिंह मेमोरियल आज भी आदरणीय है। तकलाकोट से 4 किलोमीटर पूर्व में तोया में जोरावर की समाधि है। तोया की पहाड़ियों पर जोरावर के साथियों ने अपने जनरल की अंत्येष्टि की थी।

‘रेलवे’ में जॉब, सैलरी मोटी, काम ट्रेनें गिनने का, कोट-पैंट पहन वे दिल्ली स्टेशन पर देते रहे ड्यूटी और फिर उड़ गए होश

पहाड़ी लड़ाई का मास्टर

दरअसल, जोरावर पहले सिख साम्राज्य के जनरल थे। जोरावर लद्दाख, तिब्बत, बाल्टिस्तान और स्कार्दू में जोरदार जीत दर्ज की थी। जोरावर का जन्म हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर में डोगरा परिवार में हुआ था। उनका परिवार हिमाचल से बाद में जम्मू चला गया था। जोरावर एक महान प्रशासक, जोरदार लड़ाका और रणनीतिक कमांडर थे। जोरावर ऊंचाई वाली लड़ाई में माहिर थे। उन्हें पहाड़ की चोटियां पार करने में मेहनत नहीं लगती थी। वो सुरू नदी के जरिए महज 5 हजार सैनिकों के साथ लद्दाख पहुंच गए थे। उन्होंने इस दौरान स्थानीय बोटी को मात दी थी। 1835 में उन्होंने बांको कल्हान की बड़ी लद्दाखी सेना को मात दी थी। उन्होंने लेह के बाहर एक किला भी बनाया था। इसके बाद जोरावर सिंह ने 1839-40 के दौरान बाल्टिस्तान पर हमला किया था और उन्होंने लद्दाखियों की बड़ी फौज को अपनी सेना में मिला लिया था।


लद्दाख से लेकर तिब्बत पर पाई थी विजय

एक साल बाद ही जोरावर सिंह ने अपनी नजरें तिब्बत पर गड़ा लीं। मई 1841 में वह 6 हजार सैनिकों के साथ, जिसमें ज्यादातर डोगरा थे, उन्होंने तिब्बत पर हमला कर दिया। उन्होंने इस दौरान अपने सैनिकों को अलग-अलग जगह फैला दिया था। जोरावर सिंह अकेले अगल-अलग दिशा से दुश्मन की सेना पर हमला बोलते हुए कैलाश रेंज के दक्षिण तक पहुंच गए थे। जोरावर की सेना के सामने विपक्षी पस्त हो गए और वे मानसरोवर झील को पार करते हुए गारतोक तक पहुंच गए। उन्होंने तिब्बती सेना को मात दी। दुश्मन सेना के कमांडर भागकर तकलाकोट चले गए। हालांकि, जोरावर सितंबर 1841 में यहां भी पहुंच गए। बाद में तिब्बत और नेपाल के राजा ने जोरावर से तकलाकोट में मुलाकात की और उनसे संधि का प्रस्ताव रखा।

सेना में शामिल होगा जोरावर टैंक
युद्ध में बड़ी जीत के बाद जोरावर और उनकी सेना ने मानसरोवर और कैलाश पर्वत की तीर्थयात्रा पर गए। उन्होंने इस पूरे इलाके में कम्युनिकेशन नेटवर्क बनाया था। 1841 में दुश्मन सेना से जंग के दौरान जोरावर सिंह शरीद हो गए थे। इन्हीं जोरावर सिंह के नाम पर भारतीय सेना एक मेड इन इंडिया टैंक बना रही है। इन हल्के टैंक को बेहद कारगर माना जा रहा है। एलएसी पर इन टैंकों की तैनाती का प्रस्ताव सेना ने दिया है। रक्षा मंत्रालय जल्द ही इस प्रस्ताव पर चर्चा करने वाली है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *