सिदी सैय्यद मस्जिद और संस्कृत श्लोक, IIM अहमदाबाद के नए लोगो बदलने पर क्यों मचा है बवाल?
हाइलाइट्स
- 1961 में बना था लोगो
- ट्री ऑफ लाइफ का है भाव
- नए लोगो की खिलाफत शुरू
अहमदाबाद: इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट-अहमदाबाद (IIAM) अपने मौजूदा लोगो (IIMA New Logo) में बदलाव करने जा रहा है जिसे लेकर विवाद की स्थिति बन गई है। संस्थान अब दो लोगो अपनाने जा रहा। एक घरेलू और दूसरा इंटरनेशनल। खबरों की मानें तो लोगो में से संस्कृत के वाक्य और सिदी सैय्यद मस्जिद की जाली को हटाया जा रहा। ये लोगो ‘ट्री ऑफ लाइफ’ के आधार पर बनाया गया था। इसे लेकर संस्थान के प्राफेसर ही खिलाफ में आ गए हैं। प्राफेसरों ने बोर्ड ऑफ गवर्नर्स को पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने बताया कि नए लोगो में सिदी सैय्यद मस्जिद की जाली की तस्वीर और संस्कृत का श्लोक ‘विद्याविनियोगदिविकासः’ हटाया जा रहा। इसी को लेकर विरोध हो रहा।
इस बारे में बोर्ड के निदेशकों में से एक एरोल डिसूजा ने अपने बयान में कहा है कि आईआईएम-ए के लोगो के प्रस्तावित परिवर्तन के बारे में 4 मार्च को अकादमिक परिषद की बैठक में बताया गया था। ऐसा लगता है कि आईआईएम-ए बोर्ड ने इस बदलाव को मंजूरी दे दी है और दो नए लोगो पहले ही पंजीकृत किए जा चुके हैं। यह हमारे लिए एक आश्चर्यजनक है कि आईआईएम-ए ने लोगो के नए सेट को बिना फैकल्टी को सूचित किए या पूरी प्रक्रिया में शामिल किए बिना मंजूरी दे दी गई।
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1961 में बना था लोगो
आईआईएम-ए का वर्तमान लोगो – 1961 में अपनाया गया था जब संस्थान की स्थापना की गई थी – में ‘ट्री ऑफ लाइफ’ का मूल भाव है, जो अहमदाबाद में सिदी सैय्यद मस्जिद की एक उत्कृष्ट नक्काशीदार पत्थर की जाली से प्रेरित है जो 1572-73 ईस्वी में बनाया गया था। इसमें संस्कृत श्लोक विद्या विनियोगद्विकास (ज्ञान के वितरण या अनुप्रयोग के माध्यम से विकास) भी है। गुजरात सरकार के कई पर्यटन विज्ञापनों और ब्रोशर में मोटिफ डिजाइन का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
संस्थान के प्राध्यापकों ने कहा कि लोगो में मौजूद सीदी सैयद की जाली और संस्कृत सूत्र वाक्य हमारी पहचान हैं। यह भारतीय लोकाचार को दर्शाते हैं। यह भारतीयता की पहचान हैं। हमारी विद्या और संस्थान से जुड़ाव को दर्शाता है। हमारे देश के लिए विकास, उद्यम, समाज, विद्यार्थी और प्रबंधन संकाय की विकास के लिए हमारी प्रतिबद्धता दर्शाता है। इसमें बदलाव हमारी पहचान पर प्रहार के समान है।
आईआईएम-ए के पूर्व निदेशक बकुल ढोलकिया ने कहा कि इस तरह का निर्णय संस्थान के मानदंडों, संस्कृतियों और प्रथाओं का एक मौलिक उल्लंघन है। वे कहते हैं कि संकाय शासन के लोकतांत्रिक सिद्धांतों के लोकाचार से गंभीर रूप से समझौता किया गया है। हैरानी की बात यह है कि बोर्ड ने उस प्रस्ताव पर भी विचार किया जो एकेडमिक काउंसिल की ओर से नहीं आया था। ऐसा लगता है कि संस्थान की दशकों पुरानी संस्कृति खत्म हो रही है।